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शिष्यों द्वारा विशेष बोध :
अकबरने अपनी धर्मसभामें जैसा विजयहोरसूरिजीको पहले श्रेणी में नाम रखा था। ऐसे पांचवीं श्रेणीमें विजनसेमसूरि
और भानुचंद्रगणि दोनों का नाम रखा था। (आइन. इ. अकबरी ग्रंथः विजयसेनसूर और भानचंद)
उपाध्याय शान्तिचन्द्रजी महान विद्वान और १०८ अवधान कराने की अप्रतिमशक्तिवाले थे। उन्होंने राजा महाराजाओंको प्रभावसम्पन्न उपदेश सुनाकर बहुत सम्मान प्राप्त किया था। और अनेक विद्वानोंके साथ वाद-विवाद कर विजय-वरमाला के वर बन चुके थे। उन्होंने बादशाह को अहिंसाका भक्त बनानेके लिये २२८ श्लोक प्रमाण 'कृपारसकोष' नामक ग्रंथ बनाये थे। वो ग्रंथ बादशाह को रोजाना सुनाते थे। जिससे फलस्वरुप बादशाह का जन्मका महिना, हर रविवार, हर संक्रान्ति, और नवरोजाके दिनों में कोई भी व्यक्ति जीवहिंसा न करे ऐसा फर्मान बादशाह के पास निकाले थे।
एक दिन बादशाह लाहोर में था। शान्तिचन्द्रजी भी वहां थे। आप इदके अगले दिन बादशाह के पास चले गये। और कहने लगे, मेरे को कल जाने की भावना है।
बादशाहने पूछा, अकस्मात क्यों जानेका सोचा? तब उपाध्यायजीने कहा, कल इदके दिन हजारों नहीं बल्के लाखों जीवों की कतल होनेवाली है। उनका आर्तनाद से मेरा हृदय
भारि कंपित हो जायगा, इसलिये जाने का विचार किया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com