Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 30
________________ बादशाह को प्रतिबोध : ज्येष्ठ सुद १३ का दिन सारे जनसंघके इतिहास में Goldenson जैसा उदित हुवा था। क्योंकि आज सारा राष्ट्र के सम्राट और सारे जैन संघ के सार्वभौम सूरिजी का सुभग मिलन हुआ था। सरिजी अपने विविध विषयोंके निष्णात १२ साधुकी मंडली के साथ अकबर को धर्मोपदेश देने के लिये अबुलफजल के महलमें पधारे। बादशाह कुछ कार्य में व्यस्थ थे। इधर सूरिजीने आयंबील कर दिया । तब बादशाह का आमंत्रण आया । सूरिजी राजसभाके द्वार पर पधारे तब बादशाहनें सिंहासन पर से उठकर निजी तीन पुत्रों के साथ अभिवादन कर नमन किया। सूरिजीने धर्मलाभका मंगल आशीष दिया। सूरिजी के दर्शन से बादशाह के मुखपर हर्षको लालिमा छा गई। और अपने बैठक तक ले गये। बादशाह खडे है और सूरीश्वर भी खडे है। अकबरने क्षेमकुशल को पृच्छाकर कहा, आप मेरे पर बहुत कष्ट के पहाड को पार करके आये हो, इसलिये मैं आपका अहसान मानता हुं और कष्ट के लिए क्षमा चाहता हुं। आपको मेरे सुबाने कुछ भी साघन नहीं दिया। सूरिजीने उत्तरमें कहा, आपकी आज्ञासे मुझे सब कुछ देने को वे तैय्यार थे। किन्तु हमारा धर्माचार ऐसा है कि कोई भी www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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