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सूरिजी भगवंत पाटण पधारे, तब विजयसेनसूरि, उपा. विमलहर्षगणि संघ के साथ सामैया में पधारे थे। विजयसेन सूरि को गुजरात में रखकर सूरिजी आगे विहार करने लगे। उपाध्याय विमल हर्ष गणि ३५ मुनिवर के साथ उग्र विहार करते हुए दिल्ली पहिले पधार गये ।
अबुल फजल द्वारा अकबर बादशाह के साथ उपाध्याय का मिलन हुआ। आप साधु किस कारण बने ? आपके महान तीर्थ कौनसा है ? इत्यादि बहुत प्रश्नों बादशाहनें, पूछे । उपाध्यायनें ऐसी तर्क-दष्टांत के साथ समजौति दी कि बादशाह सुनकर आनंद विभोर बन गये। और नमन करके हररोज धर्मोपदेश देने जरूर पधारना ऐसी प्रार्थना भी की।
पू. उपाध्यायने सूरिवर के पास श्रावकों को भेजकर विनंती को, कि बादशाह आपके दर्शन और धर्मोपदेश सुनने को चातक पंखी की तरह आतुर है। दूसरा कोई कार्य नहीं है। आप शान्ति से पधारना और स्वास्थ्य को संभालना।
पाटण से विहार कर सूरिजी आबू पधारे। तब बीच जंगल में सहस्त्रार्जुन नामक भीलों के सरदार को उपदेश देकर मांस नहीं खाने का अभिग्रह कराया।
वहां से सूरिजी सिरोही पधारे। संघने सुंदर सामया किया इसमें महाराज सुलतान भी साथ थे। सूरीश्वरको सक्करशी देशनासे महाराजाने शिकार-मांसाहार-मदिरा एवं परस्त्रीगमन, इन चारों का नियम लेकर अपने जीवनको सफल बनाया।
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