________________
22
श्रावकोने आकर सूरिजीको विनंती की। सूरिजीने सम्मति दी, और अमीपाल आदि अग्रणी श्रावकोंका डेप्युटेशन बादशाह के पास आया। श्रीफल आदि नजराणा भेट दिया। और साथ में कहने लगे कि आप नामदारको, पू. सूरि भगवंतने धर्मलाभका मंगल आशीष दिया है। आशिर्वाद सुनकर बादशाह के मुख पर प्रसन्नताको सुखी छा गई, और बोलने लगा, सूरि महाराज कुशल है न ? मेरे योग्य कुछ आज्ञा फरमाई है ?
अमीपालने उत्तर दिया, आचार्यश्री बडे कुशल है, और आपको अनुरोध किया है कि हमारा पर्युषणपर्व आ रहे है। इसमें कोई जीव किसी मुकजीवकी हिंसा न करे ! आप इस बातकी मुनादि करानेदोंगे तो अनेक मुक जीव आशीर्वाद देंगे, और मुझे बडा आनन्द होगा। बादशाहने आज्ञा दे दो, और आगरा में आठों दिन अमारीका ढंढेरा पीटवा दिया. वह साल था वि. सं. १६३९ का।
आप आगरामें चातुर्मास व्यतीतकर शौरीपुर तीर्थ यात्रा करके पुनः आगरा पधारे। प्रतिष्ठा आदि धर्मकार्य कर दिल्ही पधारे। कई बार बादशाह के साथ आपको मुलाकात हुई।
एक बार सूरिजी अबुलफजल के महलमें धर्मगोष्ठी कर रहे थे। अकस्मात बादशाह वहाँ आ गये। अबुलफजलने स्वागत किया, और आसन पर बैठनेकी प्रार्थना की। अबुलफजलने सूरिजी की विद्वत्ता की भूरी भूरी प्रशंसा की।
प्रशंसा सुनकर बादशाहके मनोमंदिरमें भाव जग गये। सूरिजी जो मांगे वह दे के उनको प्रसन्न कर देना चाहिये । उसने सूरिजीको प्रार्थना की, कि आप ! अमुल्य समय खर्चकर उपदेश
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com