Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 32
________________ सूरिजीने मना किया मगर बादशाह के बहुत आग्रह करने पर पुस्तकें लेकर अकबरके मामसे आगरा में पुस्तकालय की स्थापना कर उन पुस्तकों को वहाँ रख दिया। और सूरिजोनें कहा, हमको जरूरत होगी तब पुस्तकें मँगवायेंगे। सूरिवरका त्याग देखकर बादशाह के मन पर बहुत बड़ा प्रभाव पडा और आनंदको खुशीमें उन्होंने दान दिया। उस समय पर बादशाहने पूछा, मेरी मीनराशिमें शनैश्चरको दशा बैठी है। लोग कहते है वह दशा बहुत कष्ट देनेवाली है। तो आप ऐसी कृपा करो जिससे यह दशा मीट जाय । सूरिजीने स्पष्ट शब्दोमें कहा, मेरा यह विषय नहीं है, मेरा विषय धर्मका है, यह ज्योतिषकी बात है। बादशाह ने कहा, मेरे को ज्योतिषशास्त्रके साथ संबंध नहीं है, आप ऐसा कोई तावज-मंत्र-यंत्र दो जिससे मुझे इस ग्रह को शान्ति मिले। सूरिजीने कहा, वो भी हमारा काम नहीं है। आप, सब जीवों पर रहेम नजर कर अभयदान दोंगे तो आपका भला होगा। निसर्गका नियम है कि दूसरे की भलाई करनेवालों को अपनी भलाई होती है। यह उपदेश देकर सूरिजी उपाश्रयमें पधारे। थोडे दिन बाद सूरिजी आगरा पधारे। चातुर्मास आगरा में किया। श्रावकोने सोचा, बादशाह सूरिजीके भक्त बने है, तो पर्युषणके आठों दिन अमारी को उद्घोषणा हो जाय तो लाभ होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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