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गंधार से प्रस्थान :
सूरिजीनें मार्गशिष कृष्ण सप्तमी को प्रस्थान करनेका मंगल निर्णय जाहिर किया। मुक्ति की ओर जाने फौज न चली हो ऐसी साधु मंडली आचार्यश्री के साथ विहार करने लगी । तब सारा संघ के एक नयन में गुरु विरहका अश्रु और दुसरा नयनमें बादशाह को प्रतिबोध देंगे उस आनन्द का अश्रु अविरत बहने लगे । और विदा देने साथमें चला । पूज्यश्रीनें शहर के बाहर मंगलिक सुना कर धर्म ध्यान में स्थिर रहनेका धर्मोपदेश दिया । जब तक सूरिजी नयनपथमें दिखाये तब तक गुरुदर्शनामृत पान करके संघ खेदित हृदय वापिस आ गये ।
विहार करते हुए सूरिजी वटादरा में पधारे । यहाँ रात्रि को पू. सूरीश्वर को एक देवीनें मोतीओं से वर्धापन की । और मंगलाशिष दिया कि, आप सुखपूर्वक बादशाह के पास पधारें । आपको बडा लाभ मिलेगा और शासन प्रभावना में अभिवृद्धि होगी । इतना कहकर देवी अंतर्धान हो गई । व सुखद समाचार सुनकर सूरिजी के मुख पर आनन्द के चार चाँद उदित हो गये ।
वहाँ से सूरि भगवंत अहमदाबाद पधारे । संघ द्वारा किया हुआ भव्य स्वागत यात्रा में सुबा शाहबखाँ भी आये थे । उसने गुरु चरण में अपना शिर रखकर पूर्वी किया हुए अपराध की क्षमा याचना मांगी। और बादशाह का भावपूर्ण निमंत्रण को और किसी भी वाहन चाहिये इत्यादि की विनंती को । सूरिजीनें अपने आचारका वर्णन किया । इधर से पत्र लेकर आये हुये दो सेवक भी सूरिजी के साथ चलने लगे ।
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