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मुगल बादशाह का आमन्त्रण :
'अकबर की सभा पांच विभागों में विभक्त थी । इसमें पहिले लाइन में १६ वाँ नंबर में हरजी सूर है।' ऐसी सूची आइने अकबरी नामक ग्रंथ में है । वो ही अपने चरित्र नायक आचार्य विजय होर सूरीश्वरजी महाराज ।
कौनसा निमित्तसे आचार्यदेव की अकबर के साथ मुलाकात हुई इस प्रसङग को जानने के लिये वाचक को भी बडी तमन्ना हो गई होगी । अतः अब जानकारी दे देता हूँ ।
दिल्ही के मेइन रोड पर भारी हलचल मचगई है । बैन्ड और शहनाई का मधुर स्वरोंदो गगन को भेद कर रहे है । जैन शासन की जय, महातपस्वी चंपाबाई की जय, ऐसा जय-जय का बुलंद नादोनें दिशाओं को शब्दमय बना दिया है । महा तपस्वी का भव्य जुलुस सडक पर से जा रहा है ।
झरुखा में बैठे हुवे सारे हिंदुस्तान के बादशाह अकबर व जुलुस को देखकर पास में खडे हुए सेवक को पूछने लगा, वह कौन सा जुलुस है । तब सेवक ने कहा, राजन् ! चंपाबाई श्रावीकानें छ महिना का उपवास ( रोजा) किया है। वह अपने जैसा रोजाउपवास करते है, ऐसा नहीं, किंतु दिनरात खाना नहीं और सूर्योदय के बाद आवश्यकता हो तो गर्मपाणी पीते है । वह सूर्यास्त के बाद पाणी भी नहीं लेते है । ऐसी महान उपवास की तपश्चर्या श्रावकानें की है ।
अकबर वह सुनकर राहु से ग्रस्त है ऐसा ठंडा हो गये । और आश्चर्य से
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सूर्य कैसा ठंडा हो जाता बोलने लगा, ऐसा क्या
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