Book Title: Gyan Vinod Author(s): Kanakvimal Muni Publisher: Muktivimal Jain Granthmala View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१] चित्रं चेतसि वत्ततेऽद्भुतमिदं व्यापल्लताहारिणी, ___ मूर्तिस्फूर्ति मतीमतीव विमलां नित्यं मनोहारिणीम् । विख्यातां स्नपयन्त एव मनुजाः शुद्धोदकेन स्वयं, सङ्ख्यातीततमोमलापनयतो नैर्मल्यमाविभ्रति ॥ २ ॥ धन्यादृष्टिरियं यया विमलया दृष्टो भवान् प्रत्यहं, धन्यासौ रसना यया स्तुतिपथं नीतो जगद्वत्सलः। धन्यं कर्णयुगं वचोऽमृतरसं पीतं मुदा येन ते, धन्यं हृत् सततं च येन विशदस्तवन्नाममन्त्रो धृतः ॥३॥ कि पीयूषमयी कृपारसमयी कर्पूरपारीमयी, किं चानन्दमयी महोदयमयी सद्ध्यानलीलामयी । तत्वज्ञानमयी सुदर्शनमयी निस्तन्द्रचन्द्रप्रभा, सारस्फारमयी पुनातु सततं मूर्तिस्त्वदीयासताम् ।।४।। लोकालोकाविभासनकतरणिप्रायास्त्वदीयाः शुभा. वाचोवाक्यक्तामशेषविमलज्ञानं सदा तन्वते । संसाराम्बुधिमध्यमज्जदसुभृद्वन्दस्य याः साम्प्रतं, प्रोतायन्त इव प्रहृष्टमनसस्त्वद्भ्यानमासेदुपः ॥ ५ ॥ ॥ इतिश्रीमत्तपागणगगनाङ्गणदिनमणिभट्टारक श्रीज्ञानविमल सरिरचितं श्री साधारण जिनस्तोत्रं संपूर्णम् ।। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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