Book Title: Gyan Vinod
Author(s): Kanakvimal Muni
Publisher: Muktivimal Jain Granthmala

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ 8 ] तीर्थोद्धरादि करणीय न काम कीg, पामी मनुष्यभव व्यर्थ गुमावी दीधुं ॥ २१ ॥ वैराग्य रंग गुरुना वचने न थावे, दुष्टोतणां वचनमां नव शांति आवे; अध्यात्म क्लेश हृदये न स्फुरायमान, संसारथी किम तरुं करुणानिधान ? ॥ २२ ॥ पूर्व कर्यु सुकृत में न कदी जिनेश, आगामी जन्मनी कहो किम थाय लेश; भूतादि जन्मत्रय हुं जिनराज हार्यो, साचे मने सुखद धर्म दिले न धार्यो ॥ २३ ॥ देवेन्द्रवंद्य तुज पास चरित्र मारु, केतां वृथा विविध ए बकवाद धारूं; विश्व स्वरूप सवि पूरण जाणनार, शुं मात्र आ मुज चरित्र न लेश सार १ ॥२४॥ ताराथकी अवर न करुणाल नाथ, माराथकी अवर ना जगमां अनाथ; सम्यक्त्वदायी कुशलेंदु भवाब्धि तारो, श्री दीपचंद शिशुनीअरजी स्वीकारो॥२५॥ For Private And Personal Use Only

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