Book Title: Gyan Vinod
Author(s): Kanakvimal Muni
Publisher: Muktivimal Jain Granthmala

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ 27 ] अंगनाओ, संपदाओ || २२ || पद्माननी सहस चोसठ तेवी तजी अरजिनेश्वर नित्ये करे कवल - क्षेपन कंठ सुधी, षटू मित्रने तरण काज निषाड़ बुद्धि; उद्यान मोहन गृहे रची हेम मूर्ति, मल्लिजिनेश पडिमा उपकार कीर्ति || २३ || निःसंगदान्त भगवंत अनंतज्ञानी, विश्वोपकार करुणानिधि आत्मध्यानी; पंचेन्द्रियो वश करी हणी कर्म आवे, वन्दो जिनेन्द्र मुनिसुव्रत तेह माटे ॥ २४ ॥ इन्दो सुरो नखरो मली सर्व संगे, जन्माभिषेक समये अति भक्ति रंगे; विद्याधरी सुखरी शुभ शब्द रागे, संगीत नाटक करे नेमिनाथ आगे ।। २५ ।। राजेमती गुणवती सती सौम्यकारी, तेने तमे तजी थया महा ब्रह्मचारी; पूर्वभवे नव लगे तुम स्नेह धारी, हे नेमिनाथ ! भगवंत परोपकारी ॥ २६ ॥ सम्मेतशैलशिखरे प्रभु पार्श्व सोहे, शंखेश्वरा अमीझरा कलिकुंड मोहे; श्री अश्वसेन कुलदीपक मातु चामा, नित्ये अचित्य महिमा प्रभु पार्श्वनामा || २७ ॥ For Private And Personal Use Only

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