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-गुरुवाणी
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मांगता है, उपदेश देता है. कहां “भिक्षाद्वारा गृहे-गृहे" -- भिक्षा के माध्यम से हरेक व्यक्ति तक वह जाता है और कहता है "दीयतां दीयता, अदातुः फल मिहराम्"
सेठ! कुछ देना, कुछ देना, मैंने पूर्वभव में कुछ नहीं दिया, उसका ईनाम भिखारी बना, यह सजा मिली. मेरी तरह से ऐसी भूल तुम कभी मत करना. देकर के जाना, परोपकार करके जाना. मैं भी तुम्हारे जैसा हूं. कोई ऐसा अशुभ कर्म किया. किसी को देने से रोका होगा. किसी के देने में ईर्ष्या पैदा हुई होगी. कोई धर्म कार्य के प्रति मन के अन्दर ईर्ष्या की आग लगी होगी. मेरा पुण्य जल गया. मुझे यह सजा मिली. प्रकृति ने यह सजा मुझे दी. मेरी तरह से तुम भूल कभी मत करना. "दीयता-दीयतां" कुछ दो, कुछ दो.
अदातुः फलमिहराम् कुछ परोपकार करके जाओ और यदि नहीं करोगे - अदातु फल मित्रस्थं ये मैंने नहीं दिया उसका प्रेक्टिकल रिज़ल्ट मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं. मुझे देखकर कुछ सीखो. क्या मेरी बात समझ गए?
आप कहें महाराज! मेरे पास कुछ देने को नहीं. बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जो मजदूरी करते हैं, पेट भरते हैं परन्तु पेटी नहीं भर पाते. इसमें कोई आपत्ति नहीं. परन्त जो देता है उसे देखकर के आप दलाल बनें. उसका कमीशन आपको मिलेगा तथा प्रसन्नता देने वाले को धन्यवाद, क्योंकि उसमें कोई जीभ नहीं घिसती. जब कोई शुभ कार्य करता है तो आपको उसकी प्रसन्नता का आभास होना चाहिए. मैत्री भाव का एक प्रकार है कि कोई भी शुभ कार्य देखकर अपने अन्दर प्रसन्नता हो तो इससे देने वाले का उत्साह बढ़ता
हरेक प्रकार से पुण्य उपार्जन आप कर सकते हैं. परन्तु यदि आप कहें कि नहीं हमारे यहां महान् पूर्वाचार्यों ने भगवान् की पूजा में लिखा -
“करण करावण अनुमोदन सखा फल निपजावे" अस्तु, यदि कोई शुभ कार्य करता हो तो उसे देख कर के प्रसन्न होइए. यह मैत्री भाव हैं और मैत्री भाव को विकसित करने का एक उपाय है - प्रसन्नता. आप अपने मित्रों को किसी शुभ कार्य करने की प्रेरणा दीजिए. अच्छे कार्यों में आप भाग लीजिए
कभी ऐसा प्रसंग यदि आ जाए तो मैं भी सोचता हूं कि आप सभी वस्तुतः दिल वाले हैं. कभी कोई मंगल कार्य आ जाए, राष्ट्र पर संकट आ जाए, समाज पर कोई विपत्ति आ जाए, कदाचित् कोई प्रकृति का ऐसा प्रकोप आ जाए तो हमेशा के लिए आप अपनी मंगल भावना रखिए. भाव के अन्दर दुष्काल नहीं चाहिए. जितनी शक्ति आपमें हो उतना अवश्य देना. परन्तु भाव और अपनी प्रसन्नता ऐसी होनी चाहिए कि ऐसे शुभ कार्यों में मैं भी भाग लूं. इसमें कुछ गांठ का पैसा नहीं लगता. परन्तु यदि आपने उसमें कृपणता की तो इसका परिणाम अच्छा नहीं आएगा.
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