Book Title: Guruvani
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 364
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: गुण हैं. भाषा को परिष्कृत करने वाले हैं. पहले यह सोचकर, विवेक पूर्वक यदि शब्द का प्रयोग किया गया, तो वह आपके लिए हितकारी होगा. उसकी कोई गलत प्रतिक्रिया नहीं होगी. सदभावना में और प्रेम संपादन करने में वह शब्द सहायक बनेगा. धर्म संयुक्तम्. हमारी प्राय: यह आदत है कि जिस वस्तु की हमें केवल जानकारी न हो, जिसकी गहराई में हम गये न हों, मात्र सुना हुआ हो, केवल शब्दों से परिचय पाया हो, वह वस्तु यदि आपके शब्द होंगे तो वह आत्मा के लिए अनर्थकारी बनेंगे. जिनाज्ञा से विरुद्ध जो शब्द मुझे इष्ट होंगे, वे आत्मा के लिए अनर्थकारी बनेंगे. जिनाज्ञा के विरुद्ध मुझे एक शब्द का भी प्रयोग नहीं करना है, ऐसा दृढ़ संकल्प रहना चाहिए. हमें जिसकी कोई जानकारी नहीं, ज्ञान की अपूर्णता है, उसके अन्दर यदि अजीर्ण आ जाये, प्रदर्शन की भावना आ जाये, तो वह वचन धर्म से युक्त नहीं होगा, यदि भाषा धर्म से मुक्त होगी तो संसार के परिभ्रमण एवं कर्मबन्ध का कारण बन जाएगी. ज्यादातर लोगों की आदत होती है कि स्वयं जानते नहीं फिर भी बताते हैं. अपना अर्थ अभिप्राय देना इतना सस्ता बन चुका है कि उसका कोई मूल्य ही नहीं रहा. इतने विशाल और गहन तत्व वाली वाणी को सही रूप में जाने बिना, उसकी गहराई में उतरे बिना, यदि परमात्मा के वचनों पर अपना अभिप्राय हम व्यक्त करें तो उस अभिप्राय का क्या मूल्य रहा । कुछ भी नहीं. यहां निर्देश दिया गया कि धर्म संयुक्तम्. वह वाणी, मेरी भाषा धर्म से युक्त होनी चाहिये, आत्मा के अनूकूल होनी चाहिये, आत्मा के वर्तुल से उस भाषा का जन्म होना चाहिये, तभी उस भाषा का मूल्य होगा और वह भाषा आपके जीवन के लिए हितकारी बनेगी. यदि भाषा का गुण अच्छी तरह से वाणी और वर्तन में, व्यवहार में आ गया तो आपका जीवन एक अलग प्रकार का होगा. परम तत्व की प्राप्ति में वह जीवन आपका सहायक बन जायेगा. मदद देने वाला बन जायेगा, और उसका यह परिणाम होगा कि व्यक्ति अपनी वाणी के द्वारा अपनी साधना को और पुष्ट करेगा. उसके अन्दर किसी प्रकार का जरा सा भी दुर्भाव नहीं रहेगा, वैर और कटुता की भावना नहीं रहेगी. सर्वत्र निन्दा संत्यागों निन्दा का परित्याग कर देना आत्मा के आरोग्य को पाने का एक सरल साधन है. अवर्णवादश्च साधुषु ऐसे सज्जन साधू पुरुषों के विषय में कभी गलत बोलने का प्रयास नहीं करना क्योंकि वह प्रयास कर्म बन्धन का ही मुख्य कारण माना गया है. परन्तु हमारे वर्तमान जीवन में ऐसे ही वातावरण का निर्माण हो गया है, ऐसी गलत बात उत्तेजित करती है. उत्तेजना कर्मबन्धन में डालती है, संसार के बन्धन में उत्तेजना साधु भी देता है पर यह उत्तेजना संसार से हटाकर परमात्मा से जोड़ती है. लोगों को परमात्मा की ओर उन्मुख करना साधु परूषों के जीवन की मर्यादा है. आत्मा के सामने आत्मा को उपस्थित करना, परमात्मा OU 335 For Private And Personal Use Only

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