Book Title: Guruvani
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 393
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी वह जवान व्यक्ति उत्तेजित हो गया, अवस्था ही ऐसी है, उत्तेजना से भरी हुई. जवानी इसी को कहा जाता है, बड़ी खतरनाक अवस्था है. उस विचार में प्रौढ़ता नहीं मिलती. विचार में परिपक्वता नहीं आती. कच्चा अनाज होता है, खाने में स्वाद नहीं आता. यह कच्ची उम्र और कच्चे विचार, जिससे आत्मा को तृप्ति और संतोष नहीं मिलता. वह एकदम उत्तेजित था, परंतु शान्त हो गया विचार के अंदर कि आ जाय तो कुछ अलग है. मेरी स्त्री ने आकर के जिस घटना का वर्णन किया वह एकदम अलग है. जाकर संत के चरणों में गिरा, और कहा वह तो प्रेम से परिपूर्ण आत्मा थी, आशीर्वाद दिया और कहा-भाई. यहां कैसे आने का कष्ट किया. महाराज! और तो सब ठीक, यह आपका कौन सा मंत्र है? यह मुझे जानना है, इसका रहस्य क्या है? आप मुझे बतलाइये. उन्होंने कहा - भाई इसमें कोई रहस्य नहीं यह कोई जाद नहीं कोई ऐसी बात नहीं, यह तो जाप मेरे लिए है मैं करता हूं. मेरी अवस्था नहीं देखी? युवावस्था है. इस अवस्था के अंदर तुमने देखा, न जाने कब पाप का प्रवेश हो जाए. अन्तर-जागृति के लिए, स्वयं को सावधान रखने के लिए, मैं इस मंत्र का जाप कर रहा हूं. "अगली भी अच्छी पिछली भी अच्छी" . बाल्यावस्था बड़ी निर्दोष अवस्था, बड़ी सुंदर अवस्था है, ऐसी अवस्था यदि अपने अंदर आ जाए. बृद्धावस्था में व्यक्ति बहुत ज्ञानी होता है. परिपक्व होता है, अवस्था अच्छी होती है, प्रौढ़ावस्था. पचास साठ वर्ष की उम्र होती है, जीवन का अनुभव होता है, उनके पास बड़े गजब की बौद्धिक शक्ति होती है. बालक के पास उस शक्ति का अभाव होता है. वह शक्ति अभी उसमें विकसित नहीं हुई. रंतु मैं एक शब्द कहूंगा. आप जरा विचार करना. आप के पास उम्र के हिसाब से बौद्धिक शक्ति, बौद्धिक प्रतिभा आ जाए, बड़ी व्यवहार कुशलता आ जाए, दिमाग आपके पास है, बालक के पास दिमाग का अभाव है, इसीलिए बालक कहा जाता है. बालक के पास बुद्धि नहीं है. अपने पास दिमाग तो है. बालक जैसा पवित्र नहीं है. बालक के पास हृदय है तो बुद्धि नहीं है. जिस दिन अपना हृदय बालक जैसा बन जाए, बुद्धि परिपक्व बन जाए दोनों में सुमेल बन जाए, ज्ञानियों ने कहा-सारी-सारी साधना सुगन्धमय बन जाए. अपूर्व जागृति अपनी अन्तर चेतना में आ जाए. सारी वासना निकल जाए. बालक जैसा हृदय नहीं, प्रेम और मैत्री से भरा हुआ हृदय नहीं. ___आप घर में कुत्ते रखते हैं. आपने कभी कुत्तों को देखा? उनकी साइकोलोजिकल स्टडी की? इन्सान के अंदर कुत्ते जैसा प्रेम भी नहीं, बड़ा अपूर्व प्रेम है. उसके अंदर. आपके घर में रहने वाला कुत्ता आपकी रोटी खाता है. सुबह से शाम तक घृणा प्रकट 364 For Private And Personal Use Only

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