Book Title: Guruvani
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 392
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी तुम चोरी करके भाग रहे हो. दो चार तमाचा लगाया. हाथ में डोरी बांध करके सिपाही लेकर उसे आश्रम में पहुंचे. प्रातः काल पांच साढ़े पांच का समय होगा. सूर्योदय की तैयारी थी और हजरत को ले आए. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्त से कहा, पुलिस वालों ने "आप कैसे सज्जन हैं मैंने कितनी बार कहा यह द्वार आप खुला रखते हो, ऐसे आवारा गर्दी में भटकते हुए लोग आते हैं, चोर डाकू आते हैं आपको यह नहीं मालूम कि इसने जिसको आप ने आश्रय दिया, आपके यहां जिसने रात निकाली हो, वह आपका सारा माल चोरी करके ले जा रहे थे, यह तो अच्छा समझिये कि हम मिल गए और पकड़ लिया, माल भी बरामद हो गया, यह आपका माल लेकर के आया हूं सन्त के चेहरे में तो और अधिक करुणा थी. बडा दया पात्र व्यक्ति उसने कहा "भाई आपने गलत समझ लिया, ये हमारे मेहमान थे. ऐसी मजबूरी में ये आये थे, इनके पास एक पैसा नहीं था, हो सकता है. कल जाकर आत्म घात करने का कोई गलत कार्य करलें, पैसे के लिए न जाने कौन सा पाप कर बैठें ? क्या पता किसी का खून करके किसी को लूट कर आ जाएं? मैंने सोचा, हमारे यहां ये सब साधन ऐसे ही पड़े हैं, क्यों न इनको पूर्ण कर दिया जाए. विचार से निर्णय ले लिया कि इनको पूर्ण कर दूं. ये माल अब मेरा नहीं इन्हीं का है. इन्हीं को भेंट दिया हुआ है." यह प्रेम की मार कैसी भयंकर होती है कि जिस के अंदर कर्म मर जाता है, मूर्च्छित हो जाता है, यह प्रेम की मार का चमत्कार है. थोड़े समय के पहले जो व्यक्ति उसे मारने आया, उस व्यक्ति की स्थिति देखिये, चरणों में गिर गया. गिरा इतना ही नहीं वह रोने लगा. उनके चरणों में गिर कर के आंसुओं से पांव धो दिए. कहा "आप कोई देवदूत हैं. आपका यह व्यवहार आपका यह आचार, मेरे हृदय का मूल से परिवर्तन आज कर गया. अब याद रखिये, मैं आपको विश्वास देता हूं कि अपने वचन के ऊपर, आज जो चाहे मुझसे करवा सकते हैं आपके पसीने की जगह अपना खून बहाने को तैयार हूं. आपके एक शब्द में प्राण अर्पण करने को तैयार हूं. यह ईश्वर की साक्षी मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि आज के बाद मेरे जीवन में ऐसा अपराध नहीं होगा. अब आप मुझे आश्रय दें, जो चाहें मेरे से सेवा कराएं." शैतान संत बन गया यह प्रेम का चमत्कार ऐसी अपूर्व प्रेम की साधना कि अंतर की वह वासना चली गई. महावीर के शब्दों में कहा जाए, अगर इस प्रकार हम प्रेम और मैत्री की साधना करें तो जितने भी शत्रु हमारी नजर मे हैं, वो मित्रवत् बन जाएंगे. सारी समस्याओं का समाधान मिल जाए, वासना मुक्त बन जाए. यह उम्र ऐसी खतरनाक है, इस उम्र में यह विचार आता नहीं, तो साधु अपनी साधना के अंदर प्रेम की उपासना कर रहा था जवान साधु था और उसका यही मंत्र"अगली भी अच्छी पिछली भी अच्छी, बिचली को जूते मार" 363 For Private And Personal Use Only

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