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-गुरुवाणी -
प्रतिनिधियों को ही लेकर मान्यता दे देंगे तो मिलेगा क्या ? लाइसेंस देने का अधिकार तो क्लर्क के पास हैं परन्तु आप यदि क्लर्क को माला पहनाएं और फल नैवैद्य रखे तो क्या होगा ? क्लर्क की क्या ताकत कि साइन करके आपको लाइसेंस दे दे. आपको मोक्ष देने का अधिकार तो मात्र परमात्मा का हैं, उनकी आराधना का है, ये पुण्य प्रभाव हैं. हमारा काम तो कार्य में सहयोग देने का है, मोक्ष देने का नहीं,
समय बदल चुका है. साम्प्रदायिक फूट का वक्त लद गया है. कितने मत, कितने पंथ बन गए हैं. संसार के जंगल के अन्दर जरूरत क्या थी इनकी ? कोई जरूरत नहीं थी. पवित्रता एक पक्षीय बन गई है. दूसरे साधु-सन्तों के पास जाने में भी हम सोच विचार करते हैं. मेरा धर्म चला जाएगा, मेरी पवित्रता चली जाएगी, हम ऐसा सोचते हैं. जहां त्याग है, जहां वैराग्य है, जहां विचारों में पवित्रता है, जहां आचार में शुद्धता है, शुद्ध आचार का पालन हैं, वहां साधुता का गुण नजर आयेगा. हमें इस गुण से अनुराग करना चाहिए.
जहां आत्मा में गुण नजर आए, वहां मुझे वन्दन करना हैं. नमस्कार करना हैं. गुणों से मझे अनुराग चाहिए. व्यक्तिगत अनुराग के जाल में हमें नहीं पड़ना चाहिए, जिससे हमारी यह स्थिति हुई है. हम कमजोर हो गए. वह देखो, वह करो उसे मत देखो, उसे मत करो, ऐसा गुणों अवगुणों के प्रति न होकर व्यक्ति के प्रति हो गया है. साधु होकर पण्डित होकर भी यदि यह रोग न गया तो क्या किया जाए.
बहुत बड़े पण्डित, समझदार पण्डित, काशी से पढ़कर आए. दोनों ब्राहमण थे. बड़े दार्शनिक थे. दोनों में अच्छी मित्रता थी. दोनों साथ-साथ पैदल यात्रा कर रहे थे. पर दोनों के मन में एक रोग था, वे एक दूसरे की निन्दा करते थे, केवल मौका मिलना चाहिए. __ संयोग से एक गांव में आए. मफतलाल का नियम था कि रोज ब्राह्मण की पूजा करके रोटी खाता. उस दिन मफतलाल को कोई मिला नही था कि उसे ये दोनों आते नजर आए. यात्री बनकर आए थे, काशी से पढकर आए थे. जैसे ही इन ब्राह्मण पुरुषों को उसने देखा त्रन्त नत मस्तक हो गया. बोला, आज तो धन्य भाग्य, सुबह से प्रतीक्षा में था कि कोई महापुरुष आए और मेरा घर पवित्र कर जाए उतम कोटि के ब्राह्मण हैं. ब्रह्मजानाति इति ब्राह्मणः. ब्रह्म को जानने वाला, आत्मा के अनुसार आचरण करने वाला ही ब्राह्मण कहलाता है.'
मफतलाल दोनों को घर ले गया. अच्छी तरह से सम्मान पर्वक स्थान दिया भोजन के लिए उचित प्रबन्ध करके, कहा आप स्नान संध्या करिए. स्नान संध्या के बाद भोजन के लिए पधारिए, उसके बाद जो योग्य दक्षिणा होगी वह आपको दूंगा.
बाथरूम एक था. पहले एक पंडित स्नान करने गया, मफतलाल बड़ा होशियार था. उसने प्रश्न करके देखना चाहा कि उसकी पंडिताई कैसी है ? कितने कैरेट की है ?
पूछा-पण्डित जी! कहाँ से आए?
न
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