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: गुरुवाणी
न्याय से, प्रामाणिकता से, ईमानदारी से उपार्जित पसीने का पैसा चाहिए, जिससे हम परमेश्वर की प्रसन्नता प्राप्त कर सकें. पूर्वकाल के उन महान पुरुषों के अन्दर यह मंगल-भावना इसीलिए आती थी क्योंकि वे प्रामाणिकता से उपार्जन करते थे. पेटी या पिटारा भरने के लिए वे कभी पाप नहीं करते थे. उनके उपार्जन में आसक्ति नहीं थी, अनासक्त भावना थी. सहज में मुझे कहना पड़ता है, निर्वाह करना कोई आसक्ति नहीं थी. उनकी मृत्यु भी महोत्सव होती थी. उनका सारा जीवन ही आनन्दमय रहता था, परन्तु आज का जीवन असंतोष की आग में जल रहा है. कैसे मैं प्राप्त करूं? किसी प्रकार मुझे मिले. सारे व्यक्तियों का जीवन उसी तरफ दौड़ रहा है. मिलता क्या है ? रेस के घोड़े की तरह हम रोज़ दौड़ते हैं. रेस कोर्स में जाकर देखिए, घोड़ा कितना दौड़ता है पर माल तो सब दूसरे ले जाते हैं, घोड़े को क्या मिलता है - चना और घास.
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ठीक इसी तरह इन्सान भी घोड़े की तरह दौड़ रहा है. आत्माराम भाई को क्या मिलता है ? मौज तो इन्द्रियां करती हैं. मन का विषय, मन का विकार अपना पोषण करते हैं, दण्ड और श्रम तो आत्मा को मिलता है. आत्मा को परलोक में दुख मिलेगा, दर्द मिलेगा वह सब आत्मा को सहन करना पड़ेगा. मौज मजा तो आपकी इन्द्रियाँ करेंगी. जैसे कि घोड़ा दौड़ता है, मज़ा दूसरे लेते हैं.
बड़े आश्चर्य की बात है. मैं बम्बई में रेस कोर्स के पास से निकला तो घोड़ों ने मुझसे कहा कि महाराज एक नई बात सुनाऊं, मैंने कहा क्या ? बोले हम जब दौड़ते हैं तो लाखों आदमी रेस कोर्स में हमें देखने आते हैं, परन्तु महाराज आप ज़रा विचार कीजिए, इन्सान सुबह से शाम तक रोज़ दौड़ता रहता है, मैं तो केवल शनिवार को दौड़ता हूं. इन्सान रोज दौड़ता है परन्तु एक भी घोड़ा उनको कभी जाकर देखता नहीं. इन्सान की दौड़ का कोई मूल्य ही नहीं है, हमारी दौड़ का तो फिर भी मूल्य है.
यह हमारी वर्तमान दशा है. बिना प्रारब्ध के कोई चीज प्राप्ति होने वाली ही नहीं है. व्यक्ति कहां-कहां जाता है, कैसे-कैसे पाप करता है, कितने गलत आचरणों का सेवन करता है, वह कभी अपने वर्तमान को नहीं देखता, वर्तमान में भविष्य को झांक करके नहीं देखता कि मैं जो आज कर रहा हूं इसकी सजा मुझे कल मिलेगी.
कुछ वर्ष पहले की बात है. अमेरिका में यह घटना घटी है. आप जानते हैं कि हमारे देश की पारिवारिक परम्परा का वहां अभाव है. ज्वाइंट फेमिली (संयुक्त परिवार) वहां पर कभी नहीं रहती. सुबह शादी की और पत्नी कब छोड़ करके चली जाएगी इसका भी कोई विश्वास नहीं. वहां यह खेल-तमाशा जैसा है. जीवन साथी की खोज करने में भी दस बार विचार करना पड़ता है, यह तो आप धन्यवाद दीजिए हमारी भारतीय परम्परा को, कि आप सुख और शांति से जीवन जी रहे हैं, परिवार में आपको परिपूर्ण प्रेम और विश्वास है. परिवार का आपके प्रति लगाव और सद्भावना है जिसका सबसे बड़ा अभाव पश्चिमी देशों में है.
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