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-गुरुवाणी
पद
कवि की कल्पना में, जगत में तीन प्रकार के व्यक्ति हैं. एक तो ऐसे मिलेंगे कि जो पत्थर तोड़ करके अपना जीवन-निर्वाह कर रहे हैं. किसी तरह से मनुष्य का जन्म मिल गया है, उसे ही किसी तरह पूरा कर रहे हैं. कुछ इस प्रकार के व्यक्ति आपको संसार में मिलेंगे जो मजदूरी कर लेंगे, नैतिक दृष्टि से परिवार का भरण-पोषण कर लेंगे, परन्तु उससे आगे का लक्ष्य उनके पास नहीं है. परन्तु बहुत कम ऐसे व्यक्ति आपको नज़र आयेंगे जो अपने विचार की सुन्दरता को जीवन में आकार देने वाले हैं. बहुत कम ऐसे व्यक्ति आपको मिलेंगे जो आत्मा में परमात्मा का निर्माण करने वाले होंगे, जो जीवन के सौन्दर्य को प्रकट करने का प्रयत्न करते हों, जिनके जीवन का एक लक्ष्य निश्चित हो कि मुझे आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा करनी है, मैं संसार में भटकने के लिए नहीं आया, चलने के लिए आया हूं. मेरा लक्ष्य निश्चित है और मुझे वहां तक पहुंचना है.
अगर आपके जीवन का एक लक्ष्य निश्चित हो जाये तो ध्याता रूपी आपकी आत्मा, ध्यान के माध्यम से ध्येय तक पहुंच सकती है. वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है, परन्तु प्रयास तो आपको ही करना पड़ेगा. आज तक हमने प्रयास नहीं किया. सिर्फ हम प्रश्न करते रहे. मन की वासना को किसी न किसी प्रकार तृप्त करते रहे. वासना कभी तृप्त नहीं होती. अब तक अप्राप्ति की वेदना के अन्दर हम कुठित बनते रहे. मानसिक मलिनता के अन्दर आत्मा के तत्त्व को मूर्छित बनाते रहे. जीवन में, कभी जागृत दशा में जीवन की पूर्णता को प्राप्त करने का हमने कोई प्रयास नहीं किया. आप अपना लक्ष्य निश्चित कर लीजिए और चलना शुरू कर दीजिए.
स्वामी विवेकानन्द ने सारे जगत् को कहा – 'उत्तिष्ठत जाग्रत'. हे आत्मन्! तुम उठो, जागृत हो जाओ, अपने जीवन का परिचय प्राप्त कर, उस लक्ष्य को ले करके आगे बढो. ___ मैं आपसे कहूंगा, यदि आप जागते हैं, तो उठ जाइए, अगर आप उठ गये हैं तो चलना शुरू कीजिए, आप चलना शुरू कर दिए हैं तो और ज्यादा अतिशीघ्रता में चलने का प्रयास कीजिए. इस छोटे से जीवन के अन्दर उस महान लक्ष्य को प्राप्त करना है, यह निश्चय आपके अन्दर में होना चाहिए. आज तक यह हमने जीवन में निश्चय नहीं किया है. आप पूछते रहे, बहुत सारे व्यक्तियों की एक आदत बन गई, महाराज जी आत्मा कहा है? परमात्मा कहा है? कैसे पहुंचेंगे? पूछ करके जीवन व्यतीत कर दिया गया और चलने का कभी प्रयास किया ही नहीं।
प्रश्न करना भी एक फैशन बन गया, माडर्न फैशन. कहीं से उठा करके,पढ़ करके, चोरी करके, सुन करके ले आये और भौतिक प्रदर्शन करने के लिए अपने प्रश्न को उपस्थित किया. धर्म प्रदर्शन की चीज़ नहीं, स्वदर्शन की चीज़ है. यह दिखाने के लिये नहीं धर्म तो स्वयं देखने के लिए है कि मैं कहां हूं और कैसी परिस्थिति में उपस्थित हं? वर्तमान में मेरा कार्य क्या है, कार्य करके लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए धर्म है. धर्म जीवन की व्यवस्था है. धर्म जीवन का अनुशासन है और धर्म स्वयं को प्राप्त करने का एक साधन है.
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