Book Title: Guruvani
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 340
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी बड़ी सुन्दर इमारत है. वह जानना चाहता है कब बना?, किसने बनाया? इतिहास की जानकारी के लिए ज्ञान लेना चाहता था. पास से एक गंवार जा रहा था. उससे पूछा यह कब बना? किसने बनाया? उस आदमी ने कहा-मालूम नहीं साहब. गोरे लोगों को यहां साहब कहते हैं, एक भाषा बन गई. वह मन में सोचने लग गया कि साहब नाम का कोई इन्जीनियर है. उसने यह इमारत बनाई है. उसके नोट कर लिया 'मालूम नहीं साहब' नाम का इन्जीनियर हैं, उन्होंने यहां ताजमहल बनवाया है. वहां से चले जयपुर, अजमेर गए, किला देखा. इमारत देखी, बड़े-बड़े राज प्रासाद देखे. वहां भी उसने पूछा-वहां तो शुद्ध हिन्दी भाषी क्षेत्र, अंग्रेजी तो उस जमाने में कोई जानता भी नहीं था. उसने वहां वही जिज्ञासा व्यक्त की कि किसने बनाया? लोगों ने कहा -- "मालूम नहीं साहब.” क्योंकि वही जवाब मिलेगा. ___ उसने सोचा, “मालूम नहीं साहब” कोई बहुत बडा इन्जीनियर है, वह जैसे वहां से गुजरात गया. वहां बड़े महल देखे. जहां जाए, वही प्रश्न, जवाब मिले -- “मालूम नहीं साहब.” उसने इंग्लैण्ड समाचार भेजा दूत के द्वारा-दी ग्रेस्टेस्ट इन्जीनियर "मालूम नहीं साहब.” हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा इन्जीनियर “मालूम नहीं साहब” है. अचानक जब बड़ौदा आना हुआ, वहां गायकवाड् महाराजा का महल देखा. बड़ी सुन्दर इमारत. दरबार जाने की तैयारी में था, अंगरक्षक खड़े थे. व्यक्तित्व बडा सुन्दर था, गोल्ड मेडल लगे हुए थे, बड़े सुन्दर कपड़े थे. दूर से उसने सोचा कि कोई बहुत बड़ा आदमी है. क्या इससे पूछा जाये? क्या वस्त्र, क्या सुन्दर गोल्ड मेडल लगे हुए थे, और कितनी शानदार इमारत है? ये नीचे कौन है? पास में से जाने वाले किसी व्यक्ति ने पूछा-हू इज देयर “मालूम नहीं साहब." उस व्यक्ति को क्या मालम कि वह कौन है यह व्यक्ति तो इतना खश हो गया कि कितने दिनों से मैं खोज कर रहा था कि "मालूम नहीं साहब" कहां मिलेगें? आज ये सहज से मिल गये, वह गया. वहां भाषा तो आती नहीं थी, परन्तु इतना प्रसन्न हो गया, आकर उसको छाती से लगायें उस को, आई एम वैरी ग्लैड टू सी यू. मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई तुम्हे मिल कर के इशारे से बात की कि हम मिलना चाहते हैं.. ए.डी.सी. घबराया-जान नहीं पहचान नहीं, इस तरह का व्यवहार. वह डयूटी पर था. दरबार जाने की तैयारी में था. उसने कहा ठीक है. हाथ से इशारा किया कि कल. उसको बड़ा सन्तोष हुआ कि उसका समय निश्चित हो गया. कल आकर मैं मिलंगा. इंग्लैण्ड समाचार भेज दिया, उत्सुकता थी, बड़ी प्रसन्नता थी, बड़ा महान आदमी मिल गया, “मालूम नहीं साहब” मुझे मिल गये. बहुत बड़े इन्जीनियर हैं, उन्हें देश में लाने का प्रयत्न करूंगा, उनसे जानकारी लूंगा. उनकी आदत है (अंग्रेजों की) सुबह घूमने निकलते - - 311 For Private And Personal Use Only

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