Book Title: Guruvani
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 353
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - - प्रामाणिकता देखिए. आज खड़ा हो गया, खडा हुआ इतना ही नही, जगत के साथ गति से चल रहा है. सब राष्ट्रों से आगे निकलने का उसका प्रयास है. ___ आज देखिए हर तरह से समृद्ध मिलेगा, बौद्धिक दृष्टि से देखिए तो बहुत समृद्ध राष्ट्र है. उनकी उन्नति का कारण देश के प्रति उनका अनुराग, और ऐसा अनुराग परमात्मा के प्रति आ जाए तो अन्तर हृदय का साम्राज्य सहज ही प्राप्त कर ले... इतना बड़ा महामन्त्री जैसे ही वहां पर राजा का आदेश हुआ, तिलक मिटाकर आओ. अस्सी वर्ष के वयोवृद्ध महामन्त्री ने कहा, राजन! मझे मिटा सकते हैं यह तिलक नही मिट सकता. चेतावनी दी देखो, समझ जाओ, तुम्हारे पूर्वजों ने इस देश की बहुत सेवा की है, ज्यादा विचार करके आओ. इसमे विचारना क्या है? पहले तो जिनेश्वर परमात्मा की आज्ञा उसके बाद, संसार को देखना है. और उसके बाद मुझे आपको सुनना है. कटे हुए पर नमक डाल दे, कैसी पीड़ा होती है.? राजा के मन में भी ऐसी पीड़ा, ऐसा दर्द पैदा हुआ. दर्द का परिणाम राजा ने आदेश दे दिया कि जिधर सैनिकों के लिए पूरी तली जा रही थी. जिधर वह रसोई बनाई जा रही थी. वहां ले जा करके मन्त्री को बतलाया गया-मन्त्री जी, राजा ने ऐसा आदेश दिया है कि उसका परिणाम आपके सम्मुख हैं. यह तेल की कड़ाही आपने देखी? बहुत बडी कड़ाही है, सैनिकों के लिए पूरी तली जा रही है. राजा ने आदेश दिया है या तो आप तिलक मिटाएं या इसके अन्दर कूद जाए. विक्रम संवत 1230 की घटना है. महामन्त्रीश्वर ने अरिहते शरण पव्वज्जामि. अरिहंत परमात्मा का समर्पण स्वीकार किया, राजा को धन्यवाद दिया और कहा-राजन, बहुत बड़ा आपका उपकार है, ऐसी जागृत दशा में आपने मुझे मृत्यु देकर इनाम दिया. ऐसा सुन्दर इनाम दिया जिससे कि भविष्य में मैं परमात्मा को पा सकं. क्या पता मृत्यु किस स्थिति में हो जाए.? क्या पता प्रमाद के अन्दर मृत्यु हो जाए? क्या पता मेरी मौत दुर्घटना में हो जाए? रात्रि में सोता रहूं और मेरे प्राण चले जाएं? बहुत ही सुन्दर मुझे मौका दिया. राजन्, मैं आपका उपकार कभी भूल नही सकूगा. एक तिलक के लिए अस्सी वर्ष के महामन्त्री ने जो कहा था, करके दिखला दिया, वे भले ही भौतिक-दृष्टि से मर गए, परन्तु इतिहास के अन्दर आज भी ये व्यक्ति जीवित मिलेंगे. कैसी अपूर्व श्रद्धा होगी. अरिहन्ते शरणं पव्वज्जामि. कूद गये उसके अन्दर, प्राण दे दिया, परन्तु अपनी श्रद्धा से चल-विचल नहीं हुये. ये हमारे पूर्वज थे, परमात्मा के प्रति ऐसी प्रामाणिकता थी. ऐसे हमारे उस जमाने के महान आचार्य, परमात्मा के प्रति और गुरुजनों के प्रति प्रामाणिकता और वफादारी थी, कहने को हम रोज कहते हैं, साहू शरणं पव्वज्जामि. यदि किसी साधु महाराज का आदेश आ जाए, देखा जाएगा. महाराज का आदेश उधार में चलता है. जगत का और परिवार का आदेश रोकड़ में चलता है 324 For Private And Personal Use Only

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