Book Title: Guruvani
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 338
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : गुरुवाणी जब ऐसी धुन सवार हो जाए. मन के अन्दर जब ऐसी बेचैनी आ जाए, कभी इस प्रकार का पागल पन आ जाए, स्वयं को जानने का, स्वयं को समझने का, तो साधना कभी निष्फल नहीं रहती. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महर्षि अरविन्द ने 40 वर्ष निकाल दिये आत्मा की खोज में, जब एकान्त स्थल पर बैठ कर उन्होंने चिन्तन किया. अब हम सारी दुनिया में भटकें मकान, दूकान, परिवार के भोज को लेकर के चलें. जीवन को चिन्ताओं से घिरा कर रखें. अन्दर क्रोध और कषाय की ज्वाला में हम तपते रहें. फिर यदि यहां आकर हम प्रश्न करें कि महाराज मैं कौन हूं? मैं क्या जबाव दूं? ऐसे व्यक्ति आज बहुत मिलेंगे. वे अधूरे जरूर हैं परन्तु प्रदर्शन पूरे का करते हैं. हमारी आदत में गम्भीरता मिलनी चाहिए, स्वयं की जानकारी के लिए, उस गम्भीरता का अभाव मिलेगा. हर व्यक्ति जानने का इच्छुक होता है, मैं जानता हूं. यह मनोवैज्ञानिक सत्य है. हर व्यक्ति का प्रयास होता है, मैं स्वयं को समझू, परन्तु प्रयास सफल नहीं हो पाता. जानने के लिए इच्छुक जरूर हैं, परन्तु प्रयत्न का अभाव है. उसके योग्य हम अपने जीवन का निर्माण नहीं कर पाते, इसीलिए जानकारी अधूरी रहती है, फिर भी आदत से लाचार, प्रदर्शन तो पूर्णता का करेंगे. जो व्यक्ति अपूर्ण है और यदि पूर्णता का प्रदर्शन करे, तो वो पूर्णता कैसे मिलेगी. अधूरा व्यक्ति अधूरे काम के अन्दर पूर्णता का परिचय किस प्रकार कर पायेगा ? सारी जानकारी नहीं लिया. हम प्रयास कर रहे हैं, रोज नया प्रश्न उपस्थित करते हैं, अपने स्वयं की जानकारी के लिए मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? कैसे बतलाया जाएगा. हमारी एक बड़ी छोटी सी बात है. अधूरे व्यक्ति कई बार कितने खतरनाक बन जाते हैं, बोलने की आदत, मैंने कहा- साधना के क्षेत्र में पहली शर्त है. स्वयं को अगर जानना है, स्वयं को देखना है, मौन की भूमिका चाहिए. बिना मौन के चिन्तन आएगा नहीं, चिन्तन में गहराई नहीं मिलेगी. आज जो खोज है, पूरी नहीं होगी. समुद्र के किनारे यदि आप घूमते हैं, थोड़ी ठण्डक मिल जाएगी, थोड़े बहुत आपको कंकड़ पत्थर मिल जाएंगे, परन्तु मोती नहीं मिल सकता. उसके लिए गहराई में जाना पड़ेगा. जीवन की गहराई में जब आत्मा डुबकी लगाए, प्रवचन के माध्यम से स्वयं को खोजने का प्रयास करे. तब आत्मा को रत्नन्त्रय का परिचय मिलता है. अपनी महानता का बोध उसको होता है. यदि अधूरा पन लेकर के चलें. हमारे यहां बोलने की आदत बहुत ज्यादा है. बिना कारण बहुत बड़ी शक्ति क्षय करते हैं, कषाय को आमन्त्रण देते हैं, संसार का आमन्त्रण देते हैं. बिना कारण आत्मा के लिए हम दण्ड निर्धारित करते हैं, अनर्थ दण्ड जिसे कहा गया है, कोई आवश्यकता नहीं है, आप थोड़ा नियन्त्रण करें, अपने विचारों पर आपने शब्दों पर, तो ये थोड़े दिन के प्रयास से सहज ही आपको मिल सकती है. 309 For Private And Personal Use Only द घर

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