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- गुरुवाणी
यह सारी धर्म साधना इस आत्मा के लिए खुराक है. इससे आत्मा को पोषण मिलता है. आत्मा अपनी गति कर सकती है. आत्मा की चेतना के अन्दर उसकी गति जागृत हो सकती है इसलिए धर्म साधना को आवश्यक माना गया. साधना के अलग-अलग बहुत सारे प्रकार बतलाए गए हैं. और इन्हीं प्रकारों को समझ करके यदि जीवन को सन्नियम बना लिया जाए तो स्वय को पाना तो कोई कठिन बात नहीं है.
व्यक्ति बहत दूरी तक जाता है, आकाश को छने का प्रयास करता है, गहों पर जाने की चर्चा करते हैं. पाताल के अन्दर जाने की बात करते हैं. सारे संसार के अन्दर हर चीज को खोजने का प्रयास करते हैं. परन्तु आज का इन्सान स्वयं को खोजने का प्रयास नहीं करता कि मैं कहां हूं? मैं स्वयं को कैसे पा सकू? उसका हमने कोई प्रयास ही नहीं किया. एक-एक जड़ पदार्थ की खोज के अन्दर न जाने कितना प्रयास हमने किया.
एक सामान्य बात आप इलैक्ट्रिक बल्ब देखते हैं, उसके अन्दर छोटा सा तार होता है. जहां प्रकाश की स्थिरता मिलती है, जहां प्रकाश को स्थिर रखा जाता है. उस एक जरा से छोटे से तार है जो धातओं का मिश्रण होता है. जो बिजली को केन्द्रित कर लेता है. और प्रकाश देता है, अपनी चमक से गर्मी से गलता नहीं, पिघलता नहीं.
एडिसन ने साढ़े तीन सौ वस्तुओं का अविष्कार किया, जार्ज एडिसन छोटी बड़ी सब मिलाकर साढे तीन सौ वस्तुओं को जन्म देने वाला, उस एडिसन ने अपनी पुस्तक में यह दो इन्च को तार के विषय में लिखा. जब-जब उसने प्रयोग किया तो वह तार पिघल जाता, गर्मी बरदाश्त नहीं कर सकता, नष्ट हो जाता, बल्ब फ्यूज हो जाता. उसने अपना प्रयास बन्द नहीं रखा. फिर से प्रयास करने का परिणामस्वरूप, उसको सफलता मिली. उस सफलता का परिणाम आज आप नजरों से देख रहे हैं. प्रकाश मिलता है, परन्तु प्रकाश को स्थिर रखने वाली धातु जिसके आविष्कार के लिए तैंतीस हजार बार प्रयोग करना पड़ा.
व्यक्ति यदि समझ ले कि क्या है, छोड़ दो. अगर टाल गया होता. प्रयोग के अन्दर अगर निष्क्रिय बन गया होता, तो आज यह चीज आप के सामने नहीं होती. संसार में एक जन सामान्य जड़ पदार्थ उसकी खोज के लिए भी हमें इतना प्रयोग करना पड़ता है. एक्सपेरिमेन्ट करना पड़ता है. तब जा करके सफलता मिलती है. तैंतीस हजार प्रयोग के बाद आपको यह सफलता मिली. आपको प्रकाश मिला. ___ मैं आप को पूछू? प्रश्न तो हर व्यक्ति करता है परन्तु मैं यह जानना चाहता हूं कि आत्मा को पाने के लिए आपने कितना प्रयास किया?. प्रयोग नहीं करना है, मात्र जानकारी प्राप्त कर लेनी है और जानकारी के अनुसार यदि हमारे व्यवहार में परिवर्तन नहीं करना है तो उस जानकारी से क्या मतलब? उस जानकारी का मूल्य ही क्या.?
प्रवचन श्रवण करके उस भमिका पर यदि हम चिन्तन करें प्रवचन की गहराई में डबकी लगाएं. वहां से प्यास ले कर के जो प्रश्न उपस्थित हो जाए, उन प्रश्नों के समाधान के
रना का समाधानका
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