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-गुरुवाणी
हमारी आदत है कि हर चीज दिखाने की कोशिश करते हैं. घर की पूंजी कभी दिखाई नहीं जाती. तिजोरी हमेशा हम बंद रखते हैं. कभी कोई व्यक्ति तिजोरी खोल करके दुकान पर नहीं बैठता, कभी कोई धन के वैभव का प्रदर्शन नहीं करता कि मेरे पास कितनी सम्पत्ति है. बाजार में आप जाते हैं, हजारों रुपये जेब में हों, आप चांदनी चौंक में खड़े हो करके कभी नहीं गिनेंगें. एक सामान्य भौतिक सम्पत्ति को भी हम छिपा करके रखने की कोशिश करते हैं कि कहीं मैं लुट न जाऊं, कहीं यह चोरी न हो जाए. यह तो आत्मा का वैभव आत्मा की पूंजी है, यह बताने की चीज नहीं है कि मैं जगत में ढिंढोरा पीटूं कि मैं बड़ा धार्मिक हूं, बड़ा तपस्वी हूं, बड़ा परोपकारी हूं. यह कहने की चीज़ नहीं, यह तो छिपाने की चीज़ है.
धर्म करने की विधि के सम्बन्ध में ज्ञानी पुरुषों का मत है कि हमें धर्म गुप्तरूप से करना चाहिए. मां बच्चे को पल्ला ढाँककर दूध पिलाती है ताकि कहीं नजर न लग जाए. परोपकार गुप्त रूप से करना चाहिए ताकि यहां लोगों की प्रशंसा जीवन में पतन का कारण न बन जाय, क्योंकि प्रशंसा को पचाने की शक्ति होनी चाहिए, नहीं तो यह जहर का काम करती है. व्यक्ति में नशा चढ़ता है कि सारा जगत् मेरी प्रशंसा करता है. मैं बड़ा धार्मिक हूं – मैं बड़ा नैतिक हूं - मैंने बड़ा परोपकार का कार्य किया – मैंने बहुत बड़ा दान किया. जहां तक उसमें गुप्तता नहीं होगी, वहां तक उस दान में या धर्म में प्राण नहीं आयेगा और वह निष्प्राण धर्म कभी अंतश्चेतना को जागृत नहीं कर सकेगा. इसीलिए परमात्मा का आदेश है कि धर्मक्रिया गुप्त रूप से होनी चाहिए.
लखनऊ में वाजिद अली शाह थे. बड़े माने हुए बादशाह थे. वह वहां के नवाब थे तथा एक मनमौजी व्यक्ति थे. एक दिन जुम्मे की नमाज़ पढ़ाने का प्रसंग आया. नमाज अदा करने के लिए बड़े मुल्ला को वहां आमंत्रण दिया गया. मुल्ला मुदित हो गया कि आज तो नवाब का आमंत्रण मिला है और साथ में शाही भोजन का भी आमंत्रण है. घर में अपनी बीबी से कहा कि मुझे घर में जलपान, नाश्ता आदि कुछ नहीं करना है, आज तो शाही भोजन का आनन्द लेना है, ज़रा भूखे पेट जाऊंगा तो ठीक रहेगा. बेचारे सुबह-सुबह वहां आए. बड़े-बड़े अमीर, बड़े बड़े शहजादे, अमीरजादे, शाही मस्जिद में नमाज़ अदा करने के लिए आये थे और बड़ी अदा और अदब के साथ खुदा की बंदगी की. नमाज अदा की, पर बड़े मुल्ले के अन्दर भावना यह थी कि लोगों को मैं बताऊं कि कैसी सुन्दर मैं बंदगी करता हूं, मैं कितनी सुन्दर नमाज अदा करता हूं. लोग मेरी धर्म-क्रिया की, इस प्रार्थना की, प्रशंसा करें, वह प्रशंसा की भूख ले करके आया था. प्रशंसा की भूख मानसिक दरिद्रता है. जगत् से पाने की कामना भी मानसिक दरिद्रता का लक्षण है और जो व्यक्ति मन से दरिद्र है वह आत्मा पर विजय नही प्राप्त कर सकता. महावीर परमात्मा ने कहा कि हमारी सारी धर्मक्रियाएँ आत्मा को पाने के लिए, आत्मा का साम्राज्य प्राप्त करने के लिए तथा स्वयं का मालिक बनने के लिए होती हैं.
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