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-गुरुवाणी
कैसा सुन्दर होना चाहिए? भारतीय परम्परा का यह एक बड़ा आदर्श है और इसीलिए मैं कहूंगा कि आप भी बड़े सुखी हैं कि ऐसा परिवार आपको मिला है. आज विदेशों में लोग हमारी पारिवारिक धर्म परम्परा और संस्कृति से वे लोग ईर्ष्या करते हैं. इसके लिए तरसते हैं.
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__ अमेरिका के एक धनाढ्य व्यक्ति का प्रसंग याद आता है. उसके पास अपार वैभव, अपार सम्पत्ति थी. पर परिवार की शांति नहीं मानसिक शांति नहीं. उसका बंगला बहत विशाल था. घर के अन्दर एक सैफ बनाया और उस तहखाने के अन्दर करीब छ: करोड़ डालर की सम्पत्ति पड़ी थी, ऑर्नामेंट्स, बहुत सुन्दर मूल्यवान आभूषण और लाखों डॉलर अन्दर पड़े थे और सैफ इतना सुन्दर बना हुआ था कि किसी की नज़र में ही न आए. यांत्रिक कुशलता ऐसी सुन्दर थी कि अगर बन्द कर दिया जाए तो बाहर से एक बहुत बड़ा फोटो नज़र आए. ऐसी व्यवस्था थी कि किसी को मालूम ही न पड़े कि अन्दर क्या है. एक दिन अचानक कोई जरूरी कागज, कोई डाक्यूमेंट्स निकालने थे. वह चाबी ले करके गया, सैफ खोला. उसका गप्त रूप से अन्दर जाना किसी को मालम नहीं लगा. वह अन्दर गया दरवाजा अन्दर से बन्द करके नीचे उतरा, जरूरी कागजात थे. वे लिए और ले करके लौटने लगा. जैसे ही वह लौटने लगा, दरवाज़ा बंद. उस यंत्र में ऐसी टैक्नीकल खराबी आई कि, किसी भी हालत से दरवाजा नहीं खुला. आटोमैटिक फिटिंग थी. इलैक्ट्रानिक सिस्टम था. अन्दर कोई ऐसा साधन नहीं कि बाहर किसी व्यक्ति को मालूम पड़े कि अन्दर कोई छिपा हुआ है, पुकार रहा है या रो रहा है. न घंटी थी न इन्टरकाम टेलीफोन की व्यवस्था थी, न कोई यांत्रिक सुविधा थी. बहुत कोशिश की, निराश हो गया, पसीने से तर हो गया, मौत का डर, सामने अपनी मौत देख रहा था कि मेरी मौत निश्चित है क्योंकि किसी को भी मालूम नहीं कि मैं सैफ में उतरा हं.
जब भय आता है तो साथ में प्यास आती है. शरीर का पानी उस भय में सूख जाता है. भय से उसे बड़ी तीव्र प्यास लगी. कागज़ लेकर लिखता है कि परमात्मा की कृपा से यदि कोई व्यक्ति मुझे एक गिलास पानी पिला दे तो सारी अरबों की सम्पत्ति देने को तैयार हूँ. उसे मार्केट में एक ग्राहक भी नहीं मिला. पुण्य का जब दुष्काल आता है और जीवन के द्वार में जब मौत का प्रवेश होता है, तब ऐसे निमित्त मिलते हैं. कोई व्यक्ति नहीं, कोई पुकार सुनने वाला नहीं, कोई उसके आंसू पोंछने वाला नहीं, कोई सान्त्वना देने वाला नहीं, तड़प रहा है. कलम ले करके लिखता है - 'गोल्ड इज़ वर्स्ट प्वायजन'. संसार के अन्दर यह सबसे भयंकर जहर है. इसका स्मरण करना भी आत्मा के लिए हानिकारक है, इसका संग्रह करना सर्वनाश है और इसका स्मरण करना भी पाप है.
आप विचार कर लीजिए उसी द्रव्य के पीछे आज का इन्सान दौड़ रहा है, जो मौत का कारण है.
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