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-गुरुवाणी:
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कोई व्यक्ति उसकी आंख से आंख नहीं मिला सकता था. हिटलर के समय जर्मनी में किसी व्यक्ति की ताकत नहीं थी कि आंख से आंख मिलाकर उससे बात करे, जब भी कोई व्यक्ति उसके पास जाता तो वह आंख और गर्दन नीची करके बात करता. चाहे सेनापति हो, या अन्य कोई कैसा भी अधिकारी हो उसका यही अनुशासन था. एक सामान्य श-मेकर के यहां जन्म लेने वाला, मात्र छठीं कक्षा तक पढ़ा हुआ व्यक्ति, र का नक्शा बदल कर चला गया. मरते समय उसने अपनी प्रेमिका और अपने सुन्दर कुत्ते को स्वयं शूट कर दिया और खुद भी आत्महत्या करके मर गया. उसी समय उसने अपने नौकर को बुलाकर हिदायतें दे दी कि मेरे मरने के बाद मेरी लाश को तुम पेट्रोल में जलाकर राख कर देना क्योंकि दुश्मन के हाथ मेरी लाश चली गयी तो बड़ी दुर्दशा होगी. वह इस बात से चिंतित था कि मुसोलिनी किस तरह मारा गया? प्रजा ने उसका कैसा तिरस्कार किया? कहीं यह दशा मेरी न हो जाये. स्वयं आत्महत्या करना इतिहास को देख करके सावधान होना है, कि ऐसी भूल मेरे जीवन में न हो. __ आप जगत् को प्राप्त करके क्या करेंगे? हिटलर ने इतनी बड़ी दुनिया को जीता, अपार सम्पत्ति का मालिक बना और परिणाम क्या आया? वह बड़ा दर्द पैदा करके उसने छोड़ दिया. इससे उसको बड़ी भयंकर पीड़ा हुई. इसीलिए ज्ञानियों ने कहा कि उपार्जन इतने ही मर्यादित रूप से करना, जिससे अपना जीवन निर्वाह सुख शांति से हो जाय. अनीति का आश्रय न लेना पड़े, जीवन में अप्रामाणिकता का प्रवेश न हो जाये और मेरा नैतिक पतन न हो जाये. यहां तो उस नैतिकता का मूल्य है, वह जो धर्म की नींव है और यदि नींव मज़बूत नहीं, तो आपके जीवन की प्रामाणिकता अस्थिर है, नींव कमजोर होने पर मकान में स्थिरता कहां से आयेगी. वह धर्म स्थिर कैसे हो सकेगा? दुनिया के अन्दर सबसे बड़ा दुष्काल अच्छे चरित्र का है. यह नैतिकता का दुष्काल है, सभी जगह अनैतिकता का साम्राज्य है, सामान्य नौकरी करने वाला व्यक्ति भी अपेक्षा रखता है कि मेरी साइड इनकम (अतिरिक्त आय) कहीं न कहीं से हो. व्यापार करने वाला व्यक्ति भी यही सोचता है, सरकार के अधिकारी भी यही सोचते हैं कि मुझे कुछ जगत के अन्दर मिल जाये, यह ऐसा वायरस (विषाणु) है जो सर्व व्यापक बना हुआ है. कोई जगत् खाली नहीं रखता और इसी से हम को सावधान होना है.
जैन इतिहास में एक बात एक व्यक्ति के जीवन के सम्बन्ध में बड़ी सुन्दर आती है. उस व्यक्ति की प्रामाणिकता कैसी अपूर्व थी, कि भगवान महावीर ने उसके गुणों का अनुमोदन किया. भगवान का एक परम श्रावक और भक्त था, पुनिया. पुनिया का जीवन इतना संतोषी था कि वह उतना ही द्रव्य उपार्जन करता जिससे एक दिन तक का उसका पेट भर जाए और वह स्वयम एक समय ही आहार करता. रूई की पूनियों का व्यापार करने वाला, बाज़ार में बेच करके वह उससे इतना ही द्रव्य लाता जिससे दो आदमी का पेट भर जाए, उसे परिवार में दो के अलावा और कोई नहीं था. परन्तु उसमें मंगल-भावना ऐसी थी कि एक अतिथि को घर पर बुला कर मैं भोजन कराऊं. हमारी आर्य संस्कृति
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