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गुरुवाणी
है कि उन्हें गरज़ हो तो आएं, मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरे प्रारब्ध में परिवर्तन करने वाला संसार में कोई नहीं. ये तो मानसिक शांति के लिए हम अपनी साधना करते हैं. गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और क्या है? आप वासक्षेप लेते हैं. यह अच्छा है आपको इसका रहस्य नहीं मालूम, वरना तो आप लेना ही बन्द कर दें, क्यों दिया जाता है कुछ मालूम नहीं, देने वालों को भी मालूम नहीं, बस दिया जा रहा है. आशीर्वाद स्वरूप दिया जा रहा है, कि दुकान पर जा रहे हैं वह अच्छी चले, परिवार में समृद्धि हो. वासक्षेप - डालना. अर्थात् सुगन्धी डालना. जीवन को सुगंधित करना. सन्तों के यहां आशीर्वाद ही मिलता है, अभिशाप नहीं, लेकिन वह आशीर्वाद क्या है?
"नित्थारग पा होह" हे आत्मन्! तुम्हारी आत्मा का संसार से निस्तार हो, मोक्ष की प्राप्ति हो. समस्त दुःखों से आत्मा मुक्त बन जाए - यह गुरुजनों का आशीर्वाद होता है. “धनवान् भव, पुत्रवान् भव”, “समृद्धिवान् भव" - यह अल्पकालिक आशीर्वाद यहां नहीं होता, कि आज आ गया तो हसने लगे आर कल चला गया तो रोने लगे. यहा तो स्थाई आशीर्वाद होता है. सदा के लिए आपका मंगल हो. सदा के लिए आपकी आत्मा सुखी हो. यह मंगल आशीर्वाद हृदय से, भाव से दिया जाता है.. ___ आशीर्वाद कब लिया जाता है - कोई मंगल प्रसंग हो, कोई अनुष्ठान करते हों, आराधना करते हों, तीर्थयात्रा में जाते हों, कोई मन के अन्दर अशांति हो, रोग के कारण से साधना में कोई रुकावट आती हो, तब गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं कि भगवन! चित्त की शांति और समाधि के लिए, मेरी धर्म आराधना निर्विघ्न पूरी हो जाए, उसके लिए मुझे आशीर्वाद चाहिए. तब आशीर्वाद हृदय से, भाव से दिया जाता है.
आप सरल हैं, आपको मालूम नहीं. आजकल आशीर्वाद सिर्फ इसीलिए दिया जाता है, सन्त आपके डबल रोल को अच्छी तरह जानते हैं, अगर वासक्षेप नहीं डालें तो जो पहले भक्त बनने का नाटक कर रहे थे वही तुरन्त कहेंगे - महाराज को अभिमान आ गया, वहां खड़े रहे और वास-क्षेप भी नहीं डाला. सन्त सोचते हैं, चलो डाल दो.
आप विचार करना, साधु अपने-आप में बादशाह होता है. उन्हें किसी की फिकर नहीं, साधु जीवन का यही तो आनन्द है, कोई परवाह नहीं. परवाह करे तो वह फिर साधु नहीं. वह तो मस्त फकीर है. मिलें तो आनन्द, नहीं मिले तो आनन्द. आए तो आनन्द, जाए तो आनन्द वहाँ आनन्द में कोई कमी नहीं आती. ___ मैं इसीलिए कहता हूं कि यदि मेरे आनन्द में भागीदार बनना है तो दो-तीन चीज़ आपको समझाऊंगाः आपकी श्रद्धा निर्मल बने. अपनी आराधना में आप जागृत बनें. आपके आहार की पवित्रता प्राप्त हो और साधना की शुद्धि के द्वारा उस साध्य, मोक्ष मार्ग का परिचय आपको मिले.
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