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गुरुवाणी:
समुद्र के किनारे आप यदि घूमें तो ठण्डी हवा जरूर मिलेगी और आपको आनन्द आएगा. पर समुद्र की गहराई में डुबकी लगाएं तो मोती मिलता है. अभी तो आप प्रवचन के किनारे-किनारे, घाट पर घूम रहे हैं. आपको ठण्डक मिल रही है, आनन्द हो रहा है, बड़ी प्रसन्नता होती है, मानसिक शांति मिल रही है पर जब प्रवचन की गहराई में डुबकी लगाएंगे, तब मोती मिलेगा, रत्नत्रय मिलेगा सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्रय और उसका परिचय मिलेगा.
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इसका कितना मूल्यवान परिचय आपको मिलेगा और उसके बाद यह बाहर का आनन्द चला जाएगा. फिर अन्दर से अपने घर का आनन्द आप लेंगे. यह तो उधार का आनन्द है. चला गया तो तुरंत रुलाएगा. आपकी प्रसन्नता नष्ट कर देगा. एक क्षण के अन्दर चित्त में प्रसन्नता और दूसरे क्षण रुदन जो कि यह संसार का स्वभाव है.
आप यहां से दुकान पर गए समझ लीजिए आपका अति पुण्य का उदय है. ग्राहक आए, हज़ारों-लाखों का सौदा चल रहा है और अचानक अगर आपकी पत्नी का फोन
आ जाए.
आपका एक लड़का अचानक गिर गया, एक्सीडेण्ट हो गया तो सहसा आप जिस आनन्द में डूबे हुए पैसे गिनने में लगे थे वह अपार दुःख में परिणत हो जाता है और आप सारी मुद्रा राशि नौकर के भरोसे छोड़कर चले जाते हैं.
आप दौड़ कर के गए और अपने बच्चे को कदाचित् प्रयत्नपूर्वक बचा लिया. फिर आनन्द आया फ्लड (बाढ़) की तरह, आह! मेरा लड़का बच गया, एकदम सेफ साइड. परमात्मन्, तेरी बड़ी कृपा. एक बार रुलाया फिर हंसाया और फिर अचानक कोई ऐसा काम्पलिकेटेड केस (हालत) आ गया और पत्नी बीमार पड़ गई तो हॉस्पिटल ले गए. डिलीवरी केस है और उस समय यदि डाक्टर ने कहा कि सेठ साहब दो में से एक जीव बचेगा बताओ किसको बचाना है ? हां, तो ऐसी परिस्थिति की मैं बात कर रहा हूँ. संसार को मैं अच्छी तरह जानता हूं, घर-घर जाता हूं, एक-एक व्यक्ति से परिचय करता हूं. आप से अधिक तो संसार को मैं जानता हूं. मुझे घर घर का परिचय है. मैं कितने घर घूम आया, इतने तो आप कहीं गए भी नहीं हैं, प्रायः साठ हजार किलोमीटर चल चुका हूं. कितने ही घरों तक चला गया. कितने ही व्यक्तियों के सम्पर्क में आया. उससे अनुभव मिला और मैं स्वयं को धन्यवाद देता हूं कि बड़ा अच्छा हुआ, बड़ी समझदारी से निकल गया, नहीं तो दुःखी हो जाता.
पर आज धन्यवाद, आपको देता हूं कि यह संसार यह संघर्ष, घर के अन्दर की यह परिस्थिति, रावण जैसे अवतारी सुपुत्र यम जैसे जमाई मिले, दुर्गा देवी जैसी बहू मिले और रोज़ सुबह-शाम सेठ साहब, सेठ साहब करना पड़े. मन्त्रियों के पांव चाटने पड़े, आफिसरों की गुलामी करनी पड़े, रोज़ गुप्त दान देकर रहना पड़े ऐसे भयंकर समाज में महावीर ने साढ़े बारह वर्ष तक बड़े कठिन उपसर्ग सहन किया और आप ज़िन्दगी
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