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: गुरुवाणी
इतिहास में बहुत सी बातें मिलती हैं. सारी सम्पत्ति सब यहीं छोड़ कर के चले गये, सिकन्दर सारी दुनिया को लूटने के लिए जा रहा था. अरस्तू उसका बड़ा आध्यात्मिक गुरु था. वह उनसे आशीर्वाद लेने के लिए गया. सिकंदर को सामने देखकर अरस्तू कहता है "गुरुदेव, आशीर्वाद लेने के लिए आया हूं." "किस बात का आशीर्वाद ?"
"क्यों आए, कैसे आए ?"
"हिन्दुस्तान पर विजय प्राप्त करने के लिए जा रहा हूं."
"उसके बाद क्या करोगे ?"
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"उसके बाद, अरब पर विजय प्राप्त करूंगा."
"उसके बाद ?"
"उसके बाद, उससे आगे की जो दुनिया है, उस पर अधिकार प्राप्त करूंगा."
"अरे, उसके बाद तू क्या करेगा ?"
“पूरा मिडिल ईस्ट मेरा हो जाएगा. पूरा एशिया मेरे अधिकार में आ जाएगा और बाकी के जो भी द्वीप या खण्ड हैं, उन सब पर मेरा अधिकार होगा."
"अरें, उसके बाद तू क्या करेगा ? "
"सारे विश्व में एकाधिकार करूंगा. सारे विश्व का सम्राट बनूंगा. "
"उसके बाद तू क्या करेगा? अरस्तू ने जब आखिरी बार पूछा. "
"तब मेरे पास जीतने को कुछ नहीं रहेगा. बड़ी शांति से, ऐंठन से मैं बैठूंगा और दुनिया पर साम्राज्य करूंगा. फिर कोई इच्छा और तृष्णा नहीं."
"तू कैसा मूर्ख है-- इतनी बड़ी अशांति पैदा करके, शांति की कल्पना करता है ? धूप में पसीना सुखाने की इच्छा रखता है? अभी तुझे कौन-सी अशांति है ? खाने को मिलता है, रहने को मिलता है, हज़ारों नौकर तेरी सेवा में है, बड़ा राजमहल है, हजारों-लाखों आदमियों का घर उजाड़ कर के, किसी को मार काट कर के, किसी को लूट कर के इतनी बड़ी अशांति पैदा करके - तू शांति की कल्पना करता है. ऐसे मूर्ख व्यक्ति को मैं आशीर्वाद नहीं देता." इस प्रकार अरस्तू ने उसे स्पष्ट कह दिया.
इतिहास साक्षी है कि जैसे हिन्दुस्तान पर विजय प्राप्त की, उसे वापिस जाना पड़ा. बत्तीस वर्ष की उम्र में शरीर से लाचार हो गया. उसका जीवन असंतोष की अग्नि से परिच्छिन्न हो गया, वह मानसिक रूप से ऐसा पीड़ित बन गया कि मृत्यु शैय्या पर पड़ गया. सेनापति, और बड़े-बड़े व्यक्ति वहां पर आ गए और सभी खड़े थे.
अन्तिम समय पर कहता है कि मुझे मौत से बचाओ.
डाक्टर कहते हैं कि हमारे पास मौत का कोई इलाज नहीं. ऐसी कोई दवा हमारे पास नहीं है जो आपको बचा सके.
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