Book Title: Dhvanyaloak
Author(s): G S Shah
Publisher: Parshva Publication

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Page 14
________________ વન્યાલોક असाधारण मेधा के बल पर एक ऐसे सार्वभौम सिद्धान्तकी प्रतिष्ठा की, जो युग युग तक सर्वमान्य रहा ।" डॉ. रेवाप्रसाद द्विवेदी-“समालोचक, आनन्दवर्धन को भारतीय साहित्यशास्त्रका ऐतिहासिक कालाविभाजनका मानक बिन्दु मानते हैं । तदनुसार भामह तकका समय भारतीय काव्यशास्त्रका प्रारम्भिक काल है । और आनन्दवर्धन तकका समय रचनाकाल है...आनंदवर्धन रचनाकालकी अंतिम कडी है । परवर्ती समय को भारतीय साहित्यशास्त्रका निर्णयकाल कहा गया है, वस्तुतः वह है व्याख्याकाल ।' Krishna Chaitanya-"The doctrine of suggestion..."one of the greatest contribution of Indian poetics’’3 Dr. Tapasvi Nandi-"Anandavardhan with his theory of Vyanjanā and Dhvani has given a new orientation to the • entire theme of Rasa. Abhinava elaborates this position."4 - डॉ. विभारानी दूबे-"अलंकारशास्त्र के समस्त सम्प्रदायों में ध्वनि हि एकमात्र ऐसा सिद्धान्त है जो कवि, काव्य और सहृदय तीनोंकी अपेक्षाओंकी पूर्ति करता है। काव्य का काव्यतत्त्व उसकी अभिव्यक्ति-प्रक्रिया पर आश्रित है तथा यह अभिव्यक्ति काव्य में व्यञ्जनाका कलेवर धारण करके हि सहृदयमन आह्लादक हो सकती है। इस तथ्य का सर्वप्रथम उद्घोष ध्वनि सम्प्रदाय में हि हुआ है। .. २. "Ritua"-पश्यिाम सूमि પ્રા. રસિકલાલ છો. પરીખ યથાર્થ જ કહે છે, “પ્રાચીન ભારતનો આપણને જે જ્ઞાનવારસો મળ્યો છે તેમાં બે શાખાઓનાં ચિંતનો પશ્ચિમના બુદ્ધિવભવના વર્તમાન યુગમાં પણ મનને યોગ્ય અને ભવિષ્યના કાર્ય માટે ઉબોધક અને માર્ગદર્શક છે. એક દર્શનશાસ્ત્રનાં અને બીજાં કાવ્યશાસ્ત્રનાં...દાર્શનિક સાહિત્ય અને કાવ્યમીમાંસાનું સાહિત્ય ઊંડા અનુભવમૂલક ચિંતન ઉપર રચાયેલું હોવાથી સદાને માટે આદર યોગ્ય છે. સંસ્કૃત ભાષામાં પ્રાચીન ભારતમાં થયેલાં એ વિશેનાં 1. डॉ. नगेन्द्र-ध्वन्यालोक-सं. आचार्य विश्वेश्वर. भूमिका पृ. १ 2. डॉ. द्विवेदी रेवाप्रसाद-“आनन्दवर्धन" पृ. ५४५. 3. Krishna Chaitanya-"Sanskrit Poetics-A Critical and comparative ___Study." P. 118. 4. Dr. Nandi Tapasvi S. “The origin and development of the Theory ____of Rasa and Dhvani in Sanskrit Poetics." p. 22. 5. डॉ. दूबे विभारानी- "ध्वनिपूर्व अलंकारशास्त्रीय सिद्धान्त और ध्वनि" प्रस्तावना पृ. ५.

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