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श्री धर्म प्रवर्तन सार. नगवानने विषे उपर गवेख्यो, ए वचन असत्य थाय पण ६ नही नही यथार्थ सत्य बे. अव्येस्थिर सिद्धहै कहेतां जे , समये उत्पाद व्यय , तेज समये ध्रुवता एटले स्थिरता |
व्यने विषे जाणवी. शहां कोई कहेशे के तमे उत्पाद १ & व्यय पर्यायमां बोलोडो अने गुणमां गवेखोगे, तेनुं हुं है कारण जे तेनो उत्तर हे नाइ सिद्धांतमां अव्यपर्यायनी ६ & व्याख्या , गुण को वस्तु नथी, अमेतो अनंता पर्यायनो
समुदाय मळीने जे कार्य करे तेने गुण कहीने बोलावीए बीए. परंतु पर्याय जे जे ते गुणथी मूळधर्मे निन्न नथी, वस्तुमां पर्याय परिपाटी , तेथी पर्यायनीज प्रवृत्ति डे
अने द्रव्य ते आधार , तेनी साक्षी जोवी होय तो देव3 चंद्रजी कृत चोवीसीमां दशमा शीतळ जीनपतिना स्तवननी त्रीजी गाथानो अर्थ नरेलो डे त्यांथी जो खेजो (२) सवैया एकतीसा.
उतकृष्ट पद सिह, महा मंगळीक बुद्ध; शानभानु विसु, परम योतीवंत है. परम पवित्र प्यारो, ज्ञानानंद नोगी न्यारो; अव्या बाध सुख सारो, अनादि अनंत है: व्यापे निज व्य मांदी, गुणने पर्याय मांही; अखंख्य प्रदेश त्यांही, सही निज खेत है. एदि अवगादना, एकमां अनेकतान;
नेगी मळी निन्न सदा, मानजो प्रणाम है.॥३॥ ७ Passengs
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