Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 319
________________ PorangRGAR GROR श्री सुमतिनो रास. श्रण चिंतव्युं शुं थाशे ॥ ए चिंता निवारण मंत्रे, सर्व जय ६ मुज जाशे ॥ जगत० ॥१५॥ आदि अंत जेहनो, नहीं होवे 5 नहीं कोई परनो संगी। तीहां नयने शोक न आवे, अखंग थानंदमय रंगी ॥ जगतः ॥ १६ ॥ एम अनुन्नव छाननी शक्ति, जय शोकादि दे ॥ निर्नय चेतन मूळ स्वरूपे, रमण आनंदमय वेदे ॥ जगत ॥ १४ ॥ उदयिक नाव पोतानो माने, तीहां नयनो वासो ॥ नेद ज्ञान घट अंतर जागे, तीहां निर्भय पद खाशो ॥ जगतः ॥ १७ ॥ जयर्नु स्थानक मिथ्यात्व मोहनी, संसार वास न बुटे ॥ निर्नय स्थानक सम्यक ज्ञानी, क्षीणमां संसार वास तुटे॥जगत॥ १५॥ एम जाणी संवेग रंग करवो, अनुनवी वस्तु धर्म ॥ ज्ञान शीतळ उपयोग रमणमां, मुक्ति वरे हणी कर्म ॥ जगतः ॥२०॥ सप्त नय ज्ञाने टळे, टळे पर ममता खास ॥ पर पोतानुं मानतां, लहे उरगति वास ॥१॥ ॥ ढाळ ॥ ९ मी॥ तीरथनी आशातना नवि करीये ॥ ए देशी॥ हुकम मुनिसर वांदवा नवी जश्ए, विनय गुणमां ११ रहीए ॥ गुरु सनमुख दृष्टि वहीये, चित्त करीये स्थिर ॥ ६ हुकम मुनीसर वांदवा नवी जश्ए ॥ए आंकणी ॥ गाथा ॐ॥१॥ उपयोगी गुरु अवसरने जाणे, उपदेश करे ते टाणे॥१ उग्यो अंतर दिनकर नाणे, ठवे वचन रसाळ ॥ हुकम०॥ Preseaxxesses BIGGARAGAONKoregard GrassroomRAM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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