Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 331
________________ VRAYAror श्री गु३मातिना रास. 9 वेजी ॥ अंतर आतम उपयोग अंतर, चेतन रसमा रमावे । g ॥ मुनिपद बंदोजी ॥ नव नव संचित पाप ॥ मूळथी निकंदोजी ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ अनुन्नव ज्ञानी चक्षु अंतर, वस्तु धर्मने निहाळेजी ॥ निराकार निरंजन १ निर्मळ, अलख रूप तीहां नाळे ॥ मुनि ॥ २ ॥ है अरूपी ज्ञान घन ज्योति परमानंदनो कंदजी ॥ शांत सुधारस जलनिधि सरीखो निरखतां आनंद ॥ मुनिः ॥३॥ है अविनाशी अचळ अखंमित, परम रहस्यनो धामजी ॥ 6 अव्याबाध सुख अनंतु, पुरुसोतम जस नाम ॥ मुनि ॥5 ॥४॥ चिदानंद जगदीश्वर अरिहा, तीर्थकर नगवानजी॥ वीतराग विमळवंत योति, परमदेव प्रधान ॥ मुनि ॥५॥ शुद्ध बुद्ध अनंत अक्षय अज, अकळ अमळ अदीजी ॥ अकर्मा अ बंधक अनुदय, अनुदरिक अन्नेदी ॥ मुनि॥६॥ अन्नोगी अरोगी अजोगी, अगम अकंप अवेदीजी ॥ अशरीरी अकषायी असखायी, अलेशीअखेदी।मुनि॥ अणाहारी अण अवगाही, अगुरु लघुपरिणामीजी ॥ अति इंजिय अप्राणी अयोनि, असंसारी अनामि।मु०॥॥ अमर अनाश्रित अविरुद्ध अशोकी, अनाव असंगीजी॥ अनंत गुण पर्यायर्नु नाजन, परमातम पद जंगी॥मुनि॥ ॥॥ निजातम परमातम सरीखो, आतम ज्ञाने जाणेजी ॥ तेह स्वरुपने स्थिर उपयोगे, अनुन्नवे ध्यान टाणे ॥मनि०१ 5 ॥१०॥ निज स्वरुपमां मगन सदीवए, समन्नावे सुखशा-है ताजी ॥ उदयिक नाव अव्यापक दुवे जब, झानशीतळ 9 SROGRAGrenoner ORGAGeneral ra arre (3१८) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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