Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 336
________________ श्री शु३तिनो रास. । योग प्रवृत्ति साधन मिथ्या, समकित साधन उपयोगे ॥ ) वस्तु अरूपी धर्म अरूपी, जोगातित पद निज नोगे ॥ गीता ॥ ५॥ एसो बोध आपे गीतारथ, जम चेतन निन्न उळखावे ॥ जगतज्यां चेतन निजरूपे, ज्ञान शितळ शीवपद प्यावे ॥ गीता० ॥ ६ ॥ ॥ दुहा.॥ बोध सही नय ज्ञानमां, जाणो अव्य पर्याय ॥ स्याहाद धर्म संपजे, एम नाखे जीनराय ॥१॥ ए विण स्यादवाद नही, स्याहाद वस्तु मांही ॥ स्व पर विनागे लहे, अनुनव प्रगटे त्यांही ॥२॥ बाळ ॥२०॥ मी ॥ __..॥ प्रथम गोवाळा तणे नवेजी ॥ ए देशी ॥ हुकम मुनिसर वांदिएजी, जीन शासन शणगार ॥ स्त्रपर समय शाता नलोजी, ए सम नावी अणगार ॥ है नविकजन वंदो ए श्रणगार ॥ धर्मदान दातार ॥ नविक जन वंदो ए अणगार ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ शुद्धातम अनुन्नव सदाजी, ते स्व समयविलास ॥ परवमी १ बाया पमेजी, तेपर समय निवास ॥ नविक० ॥२॥ स्व9 समय स्व वस्तु जी, पर समय पर वस्त ॥ स्व वस्तु १ धर्म अनुलवेजी ॥ डाया जळ दर्पण गत्य ॥ नविक० ॥३॥ गुण पर्याय अनंतजी, व्यक्ति अनंतीरे निन्न ॥ तस अनु नव शुद्धातमाजी, स्व समय धर्मे लिन्न ॥ नविक० ॥४॥ ६ शुद्धातम अनुनव जीहांजी, तीहां विकल्प नही को॥ രിക്കാം NAGARIGORAGAPAGAPAGAGROR GIGAR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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