Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah
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9 बेद करीने, म तिमिर गमाव्यो रे ॥ उपगारी गुरू मुज ,
त्रुग्यो ॥ ए आंकणी ॥ १॥ मधुर ध्वनीये उपदेश करता, , वचन रसाळनी माळा ॥ श्रोता सुणतां तृप्त न थावे, बोध ,
पामे तीहां बाळारे ॥ उपगारी० ॥ २॥ चेतन शुद्ध स्वरूप 5 उपदेशी, तत्वनी मचि करावे ॥ दृष्टांत हेतु युक्ति लगावी, है
चेतन गुण चारो चरावेरे ॥ उपगारी० ॥३॥ मिथ्यात्व मोह ले अति अटारो, संसार अनंत रखवाळो ॥ जीव अजीव सरखा करी मूके, तेने सद्गुरू मारे नालो रे ॥ उपगारी० ॥ ४ ॥ मिथ्यात्व मोहनो अंत हुवो जब, चेतन समकित पामे॥ ते गुण रत्न चिंतामणी सरखो,लहे अनुन्नव
उपाधि तिहां वामेरे ॥ उपगारी॥५॥ ए पसाय सद्गुरूए 3 कीधो, रत्न अमुलख दीधो ॥ ते बदलो वळे नहीं कबदु,
उपगार अनंतो कीधोरे ॥ उपगारी० ॥ ६॥ गुरू गुण
गातां तृषा न नाजे, उलट अंग न मावे ॥ वचन जोग है थाके नहीं कबहु, मन गुरू गुणमा रमावेरे ॥ उपगारी॥
॥७॥ रत्न चिंतामणी करतां अधिका, गुरू उपगारी क
हीए ॥ अनंत जन्म मरण दुःख टाळे, तेनो पाम शो वही १ एरे ॥ उपगारी० ॥ ॥ सद्गुरू सर्व खेत्रे नवी होवे, को,
श्क अवसर लाने ॥ वचन जोगथी थाय परीक्षा, चेतन उळख्यां थाय निरनेरे ॥ उपगारी० ॥ ए॥ निर्नय स्था
नक डे नहीं बीजु, एक सद्गुरूनुं साचुं॥ वचन जूठ बंमीने १ जश्ए, बोधि बीज तीहां जाचुरे ॥ उपगारी० ॥ १०॥ है सदगुरू कल्प वृक्षथी अधिका, याचना अर्थने पूरे ॥ ते ६
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