Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 337
________________ MARGork GERMAGAR ReGre AR PROGRAGE શ્રી ગુરૂભક્તિને રાસ. १ निर्विकल्प रस पीजीएजी, अनंत गुण एकता सो॥ नविक० ॥ ५॥ शुद्धातम अनुन्नवजीहांजी, तीहां मुक्ति निरधार ॥ कर्म रहित हुवो तमाजी, तीहां लहे सिद्ध पदसार ॥ नविक० ॥ ६ ॥ शुद्धातम अनुन्नव लहेजी, त्यां साधन पूरण साध्य॥परमानंद रस पीजीयेजी, त्याग मोहादि कीजे उपाध्य ॥ नविक० ॥ ७॥ शुद्धातम अनुन्नव जीहांजी, तेहीज ध्यान प्रमाण ॥ मुक्ति दाता एहडेजी, शीवपुरनुं परियाण ॥ नविक० ॥ ॥ दपक श्रेणीये शुद्धातमाजी, 1 अनुनवे गुण पर्याय ॥ एकत्व नाव सर्व व्यक्तिनोजी, त्यां एक समये अनुन्नव थाय ॥ नविक० ए॥ तीहां केवळ ज्ञान उपजेजी, केवळ दर्शन साथ ॥ चरण यथाख्यात मूळमांजी, लब्धि पांच तीहां हाथ ॥ नविक० ॥ १० ॥ शुद्धातम अनुन्नव जीहांजी, तेहीज के जैन नाव ॥ जैन धर्मते कीजीयेजी, चेतन मूळ स्वन्नाव ॥ नविक० ॥११॥ ए स्व समय धर्म पामीयेजी, पर समय करी त्याग ॥ पर समये अनुन्नव गयोजी, तीहां स्व समयनो लाग ॥ नविक० g ॥ १२ ॥ स्त्र समय धर्म साधताजी, अनुन्नवे चेतन ५ शुद्ध ॥ तेहने माहरी वंदनाजी, ज्ञान शीतळ जस बुद्ध ॥ ॥विक ॥ १३ ॥ ॥ कळश ॥ ॥त्रुग्यो त्रुग्यो रे मुज साहेव जगनो त्रुग्यो । ए देशी॥ ॐ त्रुग्यो त्रुग्योरे उपगारी गुरू मुज त्रुग्यो ॥ हित है .बुद्धियें उपदेश कीधो, युक्तिये समजाव्यो ॥ शंका कंखा , ___ (२२५) PRGROEMixR AL DroneMOMorea Prevri Baareer Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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