Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 335
________________ OGORAGAR GURISONGamin श्री गुमतिनी रास. ..mr.w..... स्प होय केमरे ॥ सदगुरुः ॥ ५॥ बहिरातम बातम वेरी रे, अंतर आतम मित्र रे ॥ बहिरातम क्रम वांधतो रे, अंतरातम बोमे विचित्र रे ॥ सदगुरु० ॥ ६॥ अनुमोर्ड अंतर आतमारे, संवर निर्जरानावे रे ॥ मोद तत्वने साधतो रे, ज्ञान शीतळ शुद्ध स्वन्नावे रे ॥ सदगुरु० ॥ ७॥ ॥ दुहा ॥ बाहिर अंतर परम ए, आत्म परिणति तिन्न ॥ देहादिक आतम ब्रमी, बहिरातम बहु दिन्न ॥ १॥ सादि कायादि योगनो, अंतर आतमरुप ॥ क्षायक नावे केवळी, ते परमातम नूप ॥२॥ ॥ ढाळ १९ ॥ मी ॥ ॥ नाथ निरंजन देव ए प्यारो, कुंथु नाथ वंदो प्यारे ॥ए देशी ॥ गीतारथ गुणे दिनकर सरीखा, हुकम मुनि वंदो है प्यारे ॥ दर्शण करतां समकित वरवं, मिथ्यात नर्म तजवो १ नारे ॥ गीतारथ गुणे० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ सतनये धर्म उपदेश करता, अनेकांत पक्ष अनुसरता ॥ १ अन्य पर्याय वस्तुने उणता, स्याहाद गुणमां उरता ॥ गीतारथ० ॥२॥ नैगम संग्रह व्यवहार किरिया, ऋजु१ सूत्र नयने वरता ॥ त्यां सुधी समकित नही पामे, मिथ्या संग साधन करता ॥ गीतारथ० ॥ ३ ॥ शब्दनये समकित गुण पामे, तिहां विरति नावे रमता ॥ संनिरुढ केवळg नाण दरशण, एवंचूत शीवपद वरता ॥ गीता ॥४॥ (3२३) Ram esed66RAN BordGRAGRAPresear@Grenore Grord. BAGra Grahan G Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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