Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 334
________________ PAR BreaareKERLINSASARAamg श्री गु३लातिनो रास. शीव रमणी तेमवा आवे ॥ सादि अनंत काळ अजर अमर पद, जन्म मरण ते क्षय पावे ॥ गुरु० ॥ ५॥ एम उपगार निमित्त सद्गुरुनो, न वळे नवोनव दास थयां ॥ जव कोमाकोमि अनुकुळ सेवा, करतां सर्व उपाय जीहां ॥ गुरु० ॥ ६ ॥ ए उपगारी गुण न वीसरे, समकित रत्न मुज हाथ दियो ॥ गुरु गुण गाउं आनंद पावं, ज्ञान शीतळ उपयोग लीयो ॥ गुरु० ॥ ७॥ LordGARIOR ora पुष्ट निमित्त गुरु कह्या, तत्वबोध दीये दान ॥ पाहाणने पल्लव श्राणवा, उपदेश करे एक तान ॥१॥ ॥ढाळ ॥ १८ मी॥ ॥ ए गुरु वाल्होरे ॥ ए देशी ॥ हुकम मुनीश्वर वंदिये रे, आतमज्ञानी ध्यानी रे बाहिर अंतर परमने रे, उळखावे अमानी रे, सदगुरुज्ञानीरे ॥ हणीओ चपळ स्वनाव, स्थिरपद ध्यानी रे ॥ ए श्रांकणी ॥ गाथा ॥१॥ आतम बुद्धि कायादिकेरे, बहिरातम अघरुपरे ॥ कायादिकनो साक्षी रे, अंतर आत्म स्वरूपरे ॥ सदगुरु० ॥२॥ पूरण ज्ञानानंदनो रे, समाधि मय तदरूप रे ॥ पावन गुण मणि आगरु रे, ते परमातम चूप रे ॥ सदगुरु० ॥३॥ अहं करता परनावनो रे, बहि रातम दुर्गुण गेह रे ।। कर्ता शुद्ध स्वन्नावनोरे, अंतर आतम , 9 तेह रे ॥ सदगुरु ॥४ा बहिरातम नाव डोमवो रे, ग्रहवो ७ हे अंतर आतम रे ॥ परमातमनुं ध्यान करूं रे, तिहां विक ( 3२२) Demonamommons G Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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