Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

View full book text
Previous | Next

Page 332
________________ ESSAGRORRORISM श्री शु३तिन रास. शुद्ध माता मनि० ॥११॥ धर्म शुकल दोय ध्यानमां, आतम रमणता पाय ॥ उपाधि उन्मूल करी, परमातम सम थाय ॥१॥ ॥ ढाळ १६ मी ॥ ॥ हो पेज पंखीमा ॥ ए देशी॥ हो गुरुजी प्यारा हुकम मुनि महाराजजो ॥ हुं हुं 6 सेवक अंतर दृष्टि ताहरोरे लोल ॥ हो गुरुजी प्यारा क्षण न विसारं तुजजो, हितवंच्छकडे उपगारी तुं माहरोरे लोल ॥१॥ हो० धर्म अर्थ काम मोदजो, पुरुषारथ अंग जाणवा मुज मन उलस्यो रे लोल॥हो ते दाखो विस्तारजो, श्रवण करवा उमंग चित्तमा विलस्योरे लोल ॥२॥ हो मूरख माने धर्मजो, पोतीका कुळ आचार करणी तेहने रे लोल ॥ हो० पंमित माने धर्मजो, वस्तुनो स्वन्नाव धर्म डे एहने रे ॥३॥ हो अज्ञानी कहे अर्थजो, नव विध परिग्रह रक्षण तेहीज अर्थ डे रे लोल ॥ हो० ज्ञानी ६ कहे जे अर्थ जो, षट अव्य वस्तु दर्शाव ते गर्थडे रे लोल २॥४॥ हो दुर्बुद्धि कहे कामजो, स्त्री पुरुष संजोग लोग ते कामरे लोल ॥ हो सुबुद्धि कहे कामजो, अनिलाष चित्त इच्छा तेहीज कामळे रे लोल ॥५॥ हो ॥ मूरख ६ अजाण कहे मोक्ष जो, स्वर्ग मांहि इंद्रनुं स्थान ते मोक्ष 9 डेरे लोल ॥ हो० पंमित दाखे मोदजो, कर्म रहित हुओ हे चेतन तेहीज मोकळे रे लोल ॥ ६ ॥ हो० ॥ चउन्नेदे कयुं ६ BrowsgrowerGRAN PERAGE ROORAGGARAGAORAGARIGARAMARG Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344