Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah
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श्री गु३तिनी रास. रमणता ॥ अचपळ नावे शक्ति जोमे, तोमे विन्नाव पर अंगता ॥ तीहां चेतन धर्मनी व्यक्ति, स्फूरणा गुण पर्यायमां ॥ परमानंद पद नोग जोगी, अपूर्व नाव ए ध्यान-(, मां ॥ १० ॥ किरिया नवमी रे, एक्यता चेतन नावमां ॥ सुविधा हणी रे, वरते शुद्ध स्वन्नावमां ॥ समन्नावे रे, ध्याता ध्येय ध्यान एकता, नेद हणीयो रे, ग्रहण कीयो अनेदता ॥ त्रुटक ॥ अनंत गुण पर्याय व्यक्ति, अनंत धर्म प्रगटपणे ॥ मूळरूपे सहेज स्वन्नावे, परिणमन एक्यतापणे॥ नारे पीळो चीकणो, व्यक्ति कंचनमां रही। परिणमन एकत्व रूपे, कदी निन्न पमे नही ॥११॥ श्म नव विधरे, किरिया करे जे मुनिवरा ॥ ते ज्ञानी रे, नव ब्रमणाने परहर्या ॥ संसारथी रे, बुटया कर्मपास बेदीने ॥ तेने वंदुरे, गुणरागे आणंदीने ॥ त्रुटक ॥ गुणराग आनंद मामो, मुज आतमने तारवा ॥ एवा मुनिसर नित्य नमुं, कर्म रोगने वारवा ॥ ए नाव उपयोगे लाधे, नेद ज्ञान प्रगटे जदा ॥ ज्ञान शीतळ आतम गुण एक्यता, कारज सिद्ध करे तदा ॥ १२ ॥
॥ दुहा ॥ नव विध किरिया योगथी, चारित्र गुण कहाय ॥ उपयोग नावे जे लहे, ते संयम गण पाय ॥१॥
॥ढाळ १५ मी॥ ४ ॥सांनळरे तुं सजनी मोरी रजनी क्यां रमी आवीजी
ए देशो॥ हुकम मुनिश्वर आतम ज्ञानी, परमातम पद ध्या- १ PAGRIGroww.xxternsrce s
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