Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 328
________________ RER COMPRAMMAR men DameGeen spanning श्री गु३मतिनो रास. पर्याय धमें, व्यक्ति पणे होय त्यां जमे ॥ नूख नागे सुख साधे, वीर्यबळ वृद्धि करे ॥ समन्नावे नावे ए चेतन, अ-३ नंत कर्मतीहां निर्जरे ॥३॥ त्रीजी किरियारे, निंदा करे पुद्गलनी ॥ तेना संगे रे, वृद्धि राग द्वेषन॥ तेथी चेतनरे, अचेतन सरखो हु ॥ वेपारी रे इंडि पोषण ते जुओ ॥ त्रुटक ॥ तीहां सेवे पापस्थानक, अष्टादश दृढ चित्तए ॥ & पाप बांधे ब्यासी नेदे, नावे दुखनो अंत ए ॥ नरक नि-6 गोदमांही वास्यो, असंख्य अनैतो काळ ए ॥ ते फळ पाम्यो अज्ञान जोगे, निंदा करुं ज्ञान संग ए ॥४॥ चोथी किरिया रे, लबुता नावे जीवनी ॥ तुं गुण हीण रे, आशा करे पुद्गलनी॥ लोन्नी लालची रे, सेवक तुं मोहरायनो ॥ 3 अपराधी रे, अरुची वचन जीनरायनो ॥ त्रुटक ॥ कुदेवने कुधर्म कुगुरु, पद ग्राहक तुं थयो ॥ मिथ्याव रंगी, मद जंगी फेर वेर घणो कीयो ॥ ॥ क्लेश नुक्ता संतोष तेमां, अपलक्षण निधान ए॥ मा करतां रीफ पामे, ते लघुता गम ए ॥५॥ किरिया पांचटू मीरे, वांदवु उपयोग स्थिर करी ॥ सिद्ध सरखोरे, परमानंद पदने वरी ॥ मूळ रुपेरे, निरंजन निराकार ए ॥ अविनाशी रे, अनंत गुणनंमार ए ॥ त्रुटक ॥ अनंत गुण 8 पर्याय व्यक्ति, आविर्ताव:हुए जदा ॥ धर्म अनंतु तीहां लाधे, परमातम थावे तदा ॥ ए कार्य पूरण चेतननु, मुज मनमा इच्छा घणी ॥ ते रूपनो आरोप करीने, वांपुढे 3 5 त्रीनुवन घणी ॥ ६ ॥ बही किरियारे, सेवे शुद्ध रूपे थर है GAGRGross SearBGANGANAGenarenderGGGG ( 3१६) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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