Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 327
________________ PREGNAGAR GARRANGOLGrls શ્રી ગુરૂભક્તિને રાસ. १ सुगुरुजी ॥ हुकम० ॥ १३ ॥ श्राश्रव श्रावे परपणे, शुन्नाशुन्न कर्म तेह ॥ संवर नावे टाळीये, त्यां निजगुण वृत्ति गेह ॥१॥ ॥ ढाळ ॥ १४ मी॥ ॥ देशी ॥ एकवीसानी ॥ हुकम मुनिश्वर रे, वंदु विनय गुणमां रही ॥ क्रि-6 यावंत रे ए सम अवर दुजो नही ॥ ते दार्खा रे, नवन्नेदे क्रिया करे, निजात्मा रे, शुद्ध स्वन्नाव तीहां वरे ॥ त्रुटक श्रवण किर्तन बीजी, निंदा लघुता वांदq ॥ सेवा समता ध्यान एकता, ए नव बोले अनुनद्॥ विस्तारे सवंग रुचि, उपयोग, स्थिर नावमां ॥ तीहां कारज नीपजे, चेतन । मूळ स्वन्नावमां ॥ १॥ पेहेली किरिया रे, श्रवण गुरु मुखेथी करे ॥ गुरु ज्ञाने रे जीव पुद्गळ जूदा ठरे ॥जीवनो गुण रे, ज्ञान चेतना दाखीयो ॥ पुद्गळनो रे, अचेतन गुण नाखीयो ॥ त्रुटक ॥ एम निन्न धरमी, जीव न्यारो, पुदगलमा खुती रह्यो ॥ पुद्गलने पोतानो मान्यो, त्यां मिथ्यात्व चेतन लह्यो ॥ कारण कारज पुदगल साथे, अनादि संबंध ए ॥ तेथी दुखीयो चउगति नटके, करे कर्मनो बंध ए॥२॥ बीजी किरिया रे, किरतन जीव गुणर्नु करे ॥ निजात्मा रे, | त्यां पर व्हेंचीने परहरे ॥ चेतन गुण रे, ज्ञानदीपक प्रगटे 9 तदा ॥ शुद्ध धर्मी रे, मिथ्यात्व ग्रहे नही कदा ॥ त्रुटक ॥ हसमकित शुद्ध तीहां पामे, गुण श्रेणीमा रमे ॥ अनंत गुण ६ (१५) Rasirsagar Browse GroGRAGARGARH GRAM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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