Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 326
________________ STARGrowards COMAMAL G.Karagar ARMERIC GRALEReereAGarg श्री गु३तिनो रास. हुकम ॥ ४ ॥ इणि विध आश्रव दो नेदे आहे, ते चेतन 8 आश्रव ॥ सुगुरुजी ॥ हवे अनाश्रव चेतन दाखवं, आश्रवनी हांणि करवी ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम० ॥ ५ ॥ जीहां शुद्धि परसंगीपणुं, तीहां चेतन परधर्मी। सुगुरुजी ॥रागॐ द्वेष मोह जागृति तीहां अहं ममत्व अधर्मी ॥ सुगुरुजी , ॥ हुकमः ॥ ६ ॥ ए पद्धति मिथ्यात्व मोहनी, तीहां आ-६ श्रव अवकाश ॥सुगुरुजी ॥ तेने हणवोरे सद्गुरु ज्ञानथी, संवेग अनुन्नव जास ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ ७॥ संवेग ते परनाग टाळवो, अनुन्नव आतम ज्ञान ॥ सुगुरुजी ॥ चिदानंद वंदन तीहां संपजे, उपयोगिक प्रधान ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ ॥ ए पद्धति सम संवेगनी, अंतर संवर नावि ॥ सुगुरुजी ॥ ज्ञान कळा चेतनमय अनुन्नवी, शुद्ध स्वरूप मय लावी ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ ए ॥ जीवन मुक्त एही परमात्मा, आश्रव नाव विनाशी ॥ सुगुरुजी ॥ द्रवित नावित दोय नेदने हणी, थया निराश्रव वाशी ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ १० ॥ आश्रव नाव रह्यो परनावमां, स्वन्नावे थाय विनाश ॥ सुगुरुजी ॥ निज स्वन्नाव प्रहे निज चेतना, तीहां अनाश्रव खास ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम० ॥ ११ ॥ श्रव नावे स्थिर. संसार बे, अनाव शिवपद थापे ॥ सुगुरुजी ॥ आत्मज्ञानी उपयोगी थर, ६ श्राश्रव नावने कापे, ॥ सुगुरुजी ॥ हुकम ॥ १५ ॥ निराश्रवी नाम जेणे ग्रह्यु, पूजु तेहना पाय ॥ सुगुरुजी ॥ अनुमोदुं हुं शुद्ध स्वनावने, त्यां ज्ञान शितळ शुद्ध थाय॥ १ Sancoronaxissioner BODOBreeDEM G ( 3१४) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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