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श्री शु३तिनो रास. १ वखाणजो, ते वचन सत्य मुज मनमा रुच्युं सहीरे लोल॥
हो० ॥ अज्ञानी दुर बुद्धि मूर्ख जो, मतिमंद हीण बुद्धिवंत कल्पना ग्रहीरे लोल ॥ हो० ॥ ज्ञानी सुबुद्धि पंमित , जो, ग्रहण करे सर्वांगी वचन सत्य तेहर्नु रे लोल ॥ हो. ॥ पुरुषार्थ चउ अंगजो, साधे कार्य ज्ञान शीतळ होय जेहनुरे लोल ॥ ॥
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धर्म अर्थ काम मोक्षए, पुरुषारथ चउ अंग ॥ धर्म वस्तु स्वन्नाव ए, अर्थ रत्न त्रयी संग ॥ १॥ अन्तिलाषा काम कीजीए, अजरामर मोद तेह ॥ कर्म अन्नावे संपजे, परमानंद पद एह ॥२॥
॥ढाळ ॥ १७ मी ॥ ॥ नरसी मेहेता नगतहरीना जूनागढना रहेवासी॥ ए देशी॥ 3 गुरु गुणे मोटा ज्ञानी ध्यानी दुकम मुनिश्वरने वंदो
॥ विनयादिक गुण अंगे लावी, सुणो उपदेश टळे लव फंदो ॥ गुरु गुणे मोटा० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ उपदेश करता मिथ्यात्व हणता, अनंतानुं चौ अंत करता॥ अनंत पुद्गल परावर्त खुटे, संसार अर्द्ध पुद्गल हिणता ॥ गुरु० ॥२॥ धर्म दान दीए चेतन गुणगें, अचेतन गुण मूळथी दे ॥ नाव संवर मय साधन दाखे, तीहां चेतन ग्रंथी नेदे ॥ गुरु ॥ ३॥ बोधि बीज अणारोप रोपे, रत्न त्रयी साधन वाको ॥ अंतरंग अनुन्नव एकताळी, अप्रमत्त
गुण हे ताको ॥ गुरु० ॥ ४ ॥ समन्नावे नावित हुन चेतन, Press
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