Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah
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श्री गु३तिनो रास. १ गुणगणुं तीहां तेरमुरे, वसे उणां पूरव कोम॥ जघन्य
अतंर महुरत रहे रे, आयुष्य खुटे जब बोमरे ॥प्राणी ॥ ॥वंदो० ॥ १७ ॥ आयुकर्म पूरण थयो रे, तीहां हुई योगनो रोध ॥ चार कर्म अघाति टल्यांरे, टत्यो पुद्गलनो विरोधरे ॥ प्राणी० ॥ वंदो० ॥ १७ ॥ रूपातित पद पामीयारे, समश्रेणिये हुवा सिद्ध॥ ते सिद्धने करुं वंदनारे, ज्ञान शितळनी ए ऋद्ध रे ॥ प्राणी ॥ वंदो० ॥२०॥
॥ दुहा ॥ वेदक करी दायक सहे, चोथे वा सातमे गण ॥ सात प्रकृति त्यां टळे, आत्म सत्ताथी प्रमाण ॥१॥
॥ ढाळ ८ मी. ॥
॥राग सारंग ॥ हुकम मुनि महाराज, जगत गुरु हुकम मुनि महाराज ॥ सप्त नय नंजन, निरनय रंजन, शक्ति निजातम
जे ॥ उपयोग स्वन्नावे करतां, अति इंडिय बळ गाजे ॥ जगत गुरु० ॥ वंषु गीतारथ राज ॥ जगतगुरु हुकम मुनि महाराज ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ा नव परनव मरण वेदना, अनरक्षक अनगुप्त ॥ अकस्मात ए
सात नयोने, बेदे ज्ञानी युक्त॥ जगतगुरु०॥२॥ आनव १ लय ते नवविध परिग्रह, वियोग चिंत्ता कहीए ॥ ते नय
निवारण मंत्र, निर्जय निजगुण रहीए ॥ जगत० ॥३॥१ निज गुण ज्ञाने स्वपर जिन्न कीजे, आत्मा अनंत गुण ,
जरीयो॥ ते अविनाशी वस्तु अमारी, परवस्तु पर हरी Encrorematermerson
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