Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 315
________________ graGROGRAPAR श्री गुलतिनो रास. साधे, ज्ञान शीतळ एकंतरे ॥ हुकमः ॥ १४ ॥ . ॥ दुहा ॥ मिथ्यात्व उदय अन्नावथी, लहे उपशम समकित ॥ स्थिति महुरत पूरण थये, पके एम परतित ॥१॥ पमतां क्षयोपशम खहे, सास्वादन को॥ क्षयोपशम चोथे टके, सास्वादन बीजे सो॥२॥ ॥ढाळ ॥ ७ मी॥ ॥ कपट होवे अति उजळु रे ॥ ए देशी ॥ हुकम मुनीश्वर वंदिये रे, हायक समकित वंत ॥ . तेह नावने पामवा रे, उपगारी ए संत रे ॥ प्राणी वंदो ए. जगगुरु राय ॥ ए परमानंदनो कंद रे प्राणी ॥ वंदो ए जग गुरु राय ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १॥ दायक समकित जब लहे रे, चेतना तजे परधर्म ॥ परधर्मे वळगी रहे रे, जाणो तेहनो मर्म रे प्राणी ॥ वंदो० ॥२॥ पर ते पुदगल अव्य रे, धर्म तेना पर्याय ॥ शब्द रूप रस गंधळे रे, फरसादिक गवाय रे प्राणी ॥वंदो० ॥ ३॥ एह धरम पुदगल विषे रे, नहीं ले चेतन मांही ॥ तेने नजे जे चेतना रे, ते दाखं बु आंही रे प्राणी ॥ बंदो० ॥ ४ ॥ श्रोत चेतना शब्दने नजे रे, चतु नजे वरणने घाट ॥ रस चेतना रसने नजेरे, घ्राणे गंधनी वाट रे ॥प्राणी० ॥ वंदो० ॥५॥ फ रस चेतना फरसने नजे रे, ए पुदगलना पर्याय ॥ तेने 5 बजे जे आतमा रे, ते अधर्म न्याय रे ॥ प्राणी ॥वंदो॥ है ॥६॥ पांच इंशी पुदगल रे, जाणंग गुण तेही चेतन ॥ ( 303) RecorrenemasxemorroM RSTARRIAGRoork NaDARGAnareneurs Braneer Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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