Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah
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श्री गुलतिने रास. प्रकृतिरे ॥ संवेग० ॥ ११ ॥ अनादि मिथ्यात्वी समकित, क्षय उपशमने पामेरे ॥ सूत्र सिद्धांते वचन डे एस्यो, प्रथम चेतन रामरे ॥ संवेगः ॥ १२ ॥ ए क्षय उपशम नाव देखाम्यो, दृष्टांते समजावुरे ॥फेर रहित मिथ्यात्व बताव्यो, खसखसमां और न पावुरे ॥ संवेग० ॥ १३ ॥ सत्ता जोतां जेर पटारो, खसखसनो एक दाणोरे ॥ ते दृष्टांते विवेके 6 समजो, शुं करे चेतन राणोरे ॥ संवेग ॥ १४ ॥ उपशम क्षायक बही ढाळमां, आ ढाळनी शहां थइ पूरणतारे ॥ चेतन गुण उपयोगे लावी, त्यां झान शीतळनी शुद्धतारे ॥ संवेग० ॥ १५॥
दुहा. समकित मोहनी उदयमां, ते क्षयोपशम समकित ॥ चोथा गणथी वृद्धिये, चढे सातमे थिर चित्त ॥१॥
॥ ढाळ ६ ठी॥ ॥सांनळजो मुनि संयम रागे ॥ ए देशी॥
हुकम मुनीश्वर ज्ञानी ध्यानी, उपशम समकित दाखेरे ॥ ते सुणवाने चालो गुणिजन, सिद्धांत साक्षी राखेरे ॥ हुकम० ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १ ॥ आ संसार नव अटवी नमतां, चारगति विसामोरे॥ अनंत पुद्गल परावर्त्त कीधां, नाव्यां एके कामोरे ॥ हुकम ॥२॥ कार्य अवसर संसार थाके, अर्द्ध पुद्गलना नाकेरे ॥ सद्गुरु संग मले चेतनने, तत्व रुचि तिहां जागेरे ॥ हुकम ॥३॥ आतम गुण अनुनय स्थिर आवे, रंग चोल लय पावेरे ॥
(३०१ ) Recemsmsdomorrow
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