Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 312
________________ GORG.GAGRGram. MARGIRaraGORIAGraharGee श्री शु३तिना रास. है संवेग रंग तरंग बतावे, शुद्धातम गुण संगी रे॥ संवेग रंग " ६ लाग्यो । रंग लाग्यो चोळ मजीठ ॥ संवेग रंग लाग्यो । ए आंकणी ॥ गाथा ॥१॥ संवेग समकित एकज कहीए, , त्रण नेद मूळ दाखं रे ॥ दय उपशम उपशमने दायक, ९ उपयोग गुण तीहां राखं रे ॥ संवेग ॥२॥ चेतन कर्म है. अनादि संबंधे, एक पणे निन्न सत्ता रे ॥ जीव सत्तामां जीव रह्यो डे, कर्म वर्गणा पुदगलतारे ॥ संवेग० ॥३॥ ते कर्म मूळ आठ नेदे, चेतन गुणने हणता रे॥ तेमां मोह १ अति बळवंतो, लोकाधिपति बिरुद धरता रे ॥संवेग० ॥४॥ तेना पुत्र वमा पांच अटारा, चेतन गुणना घाति रे ॥ अंत-1 राय झाना दर्शनावरणी, तीहां आवे लश्कातीरे ॥संवेग०॥ ॥५॥ ए सर्वे नाव शत्रु तेमां, मिथ्यात्व अति अटारारे ॥ पापनो बाप दुखनो दाता, जाणीए फेरनो पटारोरे॥ संवेग ॥६॥ अनादि मिथ्यात्वी चेतन, ते समकित केम पामे रे॥ सदगुरु संगे विनय विवेके, दृष्टि करे गुरु सामे रे ॥संवेग॥ सद्गुरु ज्ञानीनेद बतावे,जीव अने पुद्गलनोरे जीव पुद्गल गुण न्यारा दाखे, तीहां चेतन गुणमां मळनो रे ॥ संवेग ॥ ॥ चेतन गुणमां रंग लगावी, उपयोग विस्तारे रे ॥ झान ध्यान वीर्य शक्तिये, मिथ्यात्व फेर उतारे रे॥संवेग०॥ए। केर रहित मिथ्यात्व हुवो जब, ते समकित दय उपशमरे ॥ उत्तर नेद विचित्र प्रकारे, आवे जावे वार असंख्यरे ॥ संवेग० ॥ १० ॥ बासठ सागर माजी स्थिति, उत्कृष्टो सि-, ६ द्धांतेरे ॥ जघन्य अंतर महुरत रहेवे, क्षय उपशम सात Massrowxxandreseries REGrammardamorporaGrammar Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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