Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 318
________________ श्री गु३मातनो रास. ॥ जगतः ॥ ४ ॥ परनव नय ते मुज आत्माने, दुर्गति 9) जावु पमशे ॥ ते चिंत्ता निवारण मंत्रे, जन्म मरण जरा, टळशे ॥ जगतः ॥५॥ ज्ञान कळा निज घटमां लावी, 5 असंख्य प्रदेशमा वसीए ॥ ए गतिये मुक्ति सहीए, चउ गति संसार खसीये ॥ जगत ॥६॥ मरण प्राण रहित है जय चिंत्ता, हणवा मंत्रने जणीए ॥ अमर थश्ने कोश रह्या नहीं, तीर्थकर अतुल बळ गणीए ॥ जगतः ॥ ७॥ ज्ञानादिक गुण नाव प्राण जीव, शाश्वत अविचळ रुपे ॥6 त्रण काळमां विनाश हुवे नही, एम जिने प्ररुपे ॥ ॥ जगत ॥ ॥ वेदना नय रोगादिक कारण, कष्ट । आशाता आपे ॥ ते नय निवारण मंत्रे नाणे, पूर्व कृत मुज पापे ॥ जगत ॥॥ आतमझाने पर नागे व्हेंचीने, शुद्ध स्वरूपने हुं वेदुं ॥ त्यां परमानंद योगनो नोगी, वेदनी कर्म तीहां डेढुं ॥ जगतः ॥ १० ॥ अनरक्षक नय चिंता जागी, मुज रक्षण कोण करशे ॥ए नय निवारण मंत्र आराधी, चेतन वीर्यने वरशे ॥ जगत ॥ ११ ॥ अव्य स्वन्नावे त्रणे काले, असहायी जीव ॥ रक्षकन्नक्षक कोइ न साधे, सत्ता स्वरूपमय शीव ॥ जगतः ॥ १५ ॥ अनगुप्त नय चोरनी चिंता, सदा सरवदा मनमां ॥ ते नय निवारण मंत्र जपीने, साहासिक धीर एक तनमां ॥जगतः ॥ १३ ॥ ज्ञानादिक गुण पर्याय लक्ष्मी, मुज घर माहि अनादि ॥ ते धननो को चोर न दीसे, टाळो अनगुप्त जयादि ॥ जगतः ॥ १४ ॥ अकस्मात जय चिंता जागे, (306) Varovarerrowrowrosses RaareGOOGORGEORGARGESeी MANOBOBre Boareneuroveresrore Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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