Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 289
________________ सजाय मधिर. ISARGreGaxxaasaram १ पुत्र वधु जोमी गुण खाणी रे ॥ स्वामी० ॥ ॥ इहां श्रनिग्रह पुरो थावे, लीए चारित्र चढता नावे ॥ विजय शेग्ने विजया राणी, प्रतिबंधन करे गुण खाणी रे॥ स्वामी ॥ ॥ मी.ग्रहवास कंचन माया, तजी चोकमी त्रण कषाया ॥ मिथ्यात्व त्रण नेदने वामे, दायक समकित त्यां पामे रे ॥ स्वामी० ॥ ए ॥ नाव मति श्रुत शान शुद्धि जागे, टळे पर अनुन्नव विनागे ॥ तीहां उपयोग स्थिर 6 थावे, शुद्धात्म अंतर ध्यावे रे ॥ स्वामी ॥ १० ॥ विजय 6 शेठने विजया राणी, त्यागी हुवां एसो नाव आणी ॥ झान शीतळ ए केवळी पासे, लेइ दीक्षाशीव गति जाशेरे ॥ स्वामी० ॥ ११ ॥ ॥ ढाळ ५ मी ॥ १ केवळझानी जगगुरु पासे, दिदा चारित्र लीधुंरे ॥ विजयशेठ विजयाराणीए, सावद्य पच्चख्खाण की, रे ॥ चारित्र ए रुकुं ॥ रुहुँ रमण निज गुण स्थिर ॥ चारित्र ए रुहुँ॥ ए आंकणी ॥ गाथा ॥ १॥ पंचमहावत जचरीयां हिंसा मृषा श्रदत्तरे ॥ मैथुन परिग्रह त्यागी सर्वथी, ग्रही आत्म सत्ता ज्ञान गतरे ॥ चारित्र ॥२॥ अनात्म सत्ता ६ उपाधि तजीने, अव्य नाव चारित्र लीधुं रे ॥ तेथी चन5 गति ब्रमणने टाळी, अपुनर्नव शीवसुख लीधुं रे॥ चारित्र है ॥३॥ शुना शुन्न दोय निर्वद्य नांदी, निर्वद्य एक सम, दृष्टिग। रागद्वेष हणे तीहां थावे, समन्नाव शक्ति उत्कृष्टिरे ६ ॥ चारित्र० ॥ ४ ॥ ते शक्तिये केवळ पामे, चउ गुण घाति issioesress SOMEGREGORIGORAGGROG (२७७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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