Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 305
________________ Grenorrenomenorroraordinaranews REVERG REAGrores श्री शु३तिना सस. स्वन्नावे अनित्य ॥ सदगुरु० ॥ नित्य अनित्य एक वस्तुमां ॥ गुरु० ॥ नाषे ज्ञानी विनित ॥ सदा ॥ १० ॥ स्वप्रव्य १ स्वक्षेत्र स्वकाळथी ॥ गुरु० ॥ स्वन्नाव सहित चार सत्य ॥ सदगुरु० ॥ परमव्य परखेत्र परकाळथी । गुरु०॥ परनाव ए चार असत्य ॥ सद० ॥ ११॥ अव्य पदारथ एक डे ॥ ॥ गुरु० ॥ तेमां गुण पर्याय अनेक ॥ सदः ॥ गुण पर्यायमां एक डे ॥ गुरु० ॥ अव्य पणुं ते ब्रेक ॥ सदगुरु० ॥ १२ ॥ शक्ति नाव अव्यक्तव्य ले ॥गुरुणा वक्तव्य व्यक्ति नाव ॥ ॥ सदगुरु० ॥ अन्नव्य स्वन्नाव पलटे नहीं ॥ गुरु० ॥ पलटे नव्य स्वन्नाव ॥ सद० ॥ १३ ॥ पर्यायार्थक नेद वस्तु ॥ ॥ गुरु० ॥ द्रव्यार्थक अन्नेद ॥ सदगुरु० ॥ उन्नय धर्मी द्रव्य २ ॥ गुरु० अविरोधि अबेद ॥ सद० ॥ १४ ॥ एम स्याहाद लक्षण मयी ॥ गुरुः ॥ अव्य सत्ता गुणनी खाण ॥ सदः ॥ इत्यादिक बहु नेदथी गुरु ॥ वस्तु सत्ता उळखाण ॥ सद० ॥१५॥ ते वस्तु षट् नेद ३ ॥ गुरु०॥ एक जीव अजीव पांच नेद ॥ सदा ॥ एक रुपी चार अरुपी ॥ गुरु ॥ तेने वरणवतां अखेद ॥ सद० ॥१६॥ या ढाळने पूरण करी ॥ गुरु०॥नेद कहेशुं बीजी ढाळ मांही॥ सद उलट अंगे अति घणो ॥ गुरु० ॥ ज्ञान शीतळ उगंदी सद० ॥ १७॥ SARGrammar GARGaramrone वस्तु सत्ता गुण दाखीयो, दाख्यो स्याहाद धर्म ॥ अव्य पर्यायने जाणतां, टळे मिथ्यामति नर्म ॥१॥ EReserGRICAN H Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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