Book Title: Dharm Pravarttan Sara Granth
Author(s): Surchandbhai Swarupchand Shah
Publisher: Ratanchand Laghaji Shah

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Page 304
________________ जसनाम सदगुरु वंदीए ॥ उळखावे वस्तु प्रते ॥ गुरु० ॥ ६ सत्ता सहित हित काम॥ सदगुरु० ॥१॥ गुण पर्याय नाजन सही ॥ गुरु० ॥ एक रुप त्रण काळ ॥ सदगुरुण ॥ तेह अव्य निज जातिनो ॥ गुरु० जश नहि नेद विचार ॥ सद- १ गुरु० ॥२॥ धर्म कहीए गुण स्वन्नावे ॥गुरु०॥ कर्म नावी पर्याय ॥ सदगुरु० ॥ निन्न अनिन्न त्रिविध सदा ॥गुरु०॥ एक पदारथ पाय ॥ सदगुरु०॥३॥ उपजे वीणसे स्थीर रहे ।। गुरु० ॥ ए डे वस्तु वखाण ॥ सदगुरु० ॥ उपजq विणसवं ते सही ॥ गुरुवंदीये ॥ पर्याय धर्म ते जाण ॥ सदगुरु० ॥ ४॥ स्थिरपणो तीहां द्रव्यनो ॥ गुरु० ॥ पलटे नहीं निरधार ॥ सदगुरु० ॥ अवगाहना सर्व द्रव्यनी ॥ गुरु० ॥ गुण पर्याय प्रदेश धार ॥ सदगुरु० ॥ ५॥ तेहीज हूँ सत्ता प्रव्यनी॥गुरु० ॥ वीणसे नहीं त्रण काळ ॥सदगुरु॥ द्रव्ये द्रव्य मिले नहीं ॥गुरु०॥ असहाय अनादि निहाळ ॥ सदगरु० ॥६॥ निज सत्तामय द्रव्य डे ॥ गुरु० ॥ १ परसत्ता ग्रहे न कदाय ॥ सदगुरु० ॥ अव्यरुप बति कार्यनी ॥ गुरु० ॥ तिरोनाव शक्ति सदाय ॥ सदगुरुः ॥॥ आविरनावे निपजे ॥ गुरु० ॥ व्यक्ति गुण ४ ६ पर्याय ॥ सदगुरु०॥ कार्य कारण निज प्रव्य ॥ ॥ गुरु० ॥ परद्रव्य अकारण अकार्य ॥ सद० ॥ ॥ बति पणे स्व द्रव्य २ ॥ गुरु०॥ अति पणे परद्रव्य ॥ सद० ॥ ६ एम अस्ति वे वस्तुनी ॥ गुरु० ॥ रही सर्व प्रव्य ॥ सहे दगुरु ॥ ए ॥ अव्य स्वनावे नित्य ने ॥ गुरु० ॥ पर्याय (२८२) GORG Poem GrammarGreer Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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